शिमला 11 सिंतबर । मशोबरा ब्लाॅक की सुरम्य चोटी कवालिया में जातर मेला स्थानीय देवता की पारंपरिक पूजा के साथ सम्पन्न हो गया । बता दें कि समुद्र तल से करीब आठ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित कवालिया मंदिर आदीकाल से पूरे क्षेत्र के भैंस पालकों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। जहां पर हर वर्ष भाद्र मास के दौरान शुभ मुहुर्त में कवालिया देवता की जातर निकाली जाती है । पशुपालकों की इस मंदिर से आदीकाल से आस्था जुड़ी है कि उनके पशुओं को किसी हिंसक जानवर अथवा महामारी के प्रकोप का भय नहीं रहता है ।
जातर मेले के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों से लोग कवालिया देवता का आर्शिवाद पाने के लिए आते हैं । इस मौके पर पशुपालकों द्वारा देवता की पूजा के लिए भंडारे के रूप में खीर बनाई जाती है जिसका प्रसाद जातर में आए लोग बड़े श्रद्वा से ग्रहण करते हैं ।
बता दें कि पीरन और सतलाई पंचायत के लोग हर साल ज्येष्ठ मास में अपनी भैंसों व अन्य मवेशियों को लेकर कवालिया जाते हैं और दीवाली के उपीरांत सर्दी बढ़ने पर अपने घरों को लौट जाते हैं । करीब छः माह तक लोग कैंप के रूप में रहते हैं । प्रगतिशील पशुपालक जबर सिंह ठाकुर ने बताया कि कवालिया में अतीत से उनके बुजुर्ग अपनी भैंसों को लेकर कवालिया में कैंप के रूप में रहते हैं । जहां पर पशंु खुले वन में विचरण करते हैं जबकि पशुपालकों ने अपने रहने के लिए घास के कच्चे मकान बनाए गए है ।
ग्राम पंचायत पीरन के पूर्व प्रधान दयाराम वर्मा, पशुपालक जबर सिंह ठाकुर, हंसराज वर्मा, रामगोपाल मेहता, लायक राम वर्मा ने बताया कि समुद्र तल से करीब आठ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित कवालिया मंदिर आदीकाल से पूरे क्षेत्र के भैंस पालकों की आस्था का केंद्र बना हुआ है । उन्होने कहा कि कवालिया प्रकृति सौंदर्य से भरपूर है । मूलभूत सुविधाओं के सृजन से यह स्थल प्रदेश में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल के रूप में उभर सकता है । इनका कहना है कि सैलानी इस स्थल पर पहंूचकर प्रकृति की अनुपम छटा तथा हिमालय पर्वत की हिमाच्छादित चोटियांें और मैदानी श्रेत्रों का आन्नद ले सकते हैं । उन्होने बताया कि यह स्थल पर्यटक स्थल चायल और कूफरी से करीब 20 किलोमीटर, दूरी पर है । सैलानी कोटी से पजौली घाटी तक वाहन द्वारा तथा उसके उपरांत करीब दो किलोेमीटर का पैदल सफर करके कवालिया चोटी पर पहूंच सकते हैं ।