हिमाचल में अगर उपचुनावों की बात की जाए तो फतेहपुर के उपचुनाव में दोनों ही पार्टियों में गरमा गर्मी बनी हुई है।
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, फतेहपुर में आग दोनों ही तरफ लगी है।
अगर हम भाजपा के भीतर की बात करें तो चक्की पार का नारा बुलंद हो रहा है, तो कांग्रेस में परिवारवाद के खिलाफ रैली – प्रदर्शन अभी शुरू हो चुके है।
अब जो दल अंतर्कलह और बगावत को साध लेगा, ये तय है कि उपचुनाव में वो बेहतर करेगा। इस उपचुनाव में नज़र हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संस्थापक डॉ राजन सुशांत पर भी होगी जिनके लिए ये चुनाव करो या मरो से कम नहीं होने वाला। ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबला तो तय है ही, और यदि कांग्रेस-भाजपा का अंतर्कलह नहीं थमता तो संभवतः बागी उम्मीदवारों की मौजूदगी इस मुकाबले को और दिलचस्प बना देगी इसी बेतहाशा अंतर्कलह और खींचतान के बीच विशेषकर तीन नेताओं के लिए ये उपचुनाव उम्मीदों का उपचुनाव है।
पहले है भवानी सिंह पठानिया, जो कॉर्पोरेट जगत की नौकरी छोड़कर अपने पिता स्व सुजान सिंह पठानिया की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए फतेहपुर लौट आये है। दूसरे है कृपाल सिंह परमार जो पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके है और ऐसे में उपचुनाव की हार उनके राजनैतिक जीवन पर ग्रहण साबित हो सकती है। तीसरा नाम है डॉ राजन सुशांत का जो नई पार्टी बनाकर 2022 में सभी 68 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान तो कर चुके है, पर यदि फतेहपुर में वे खुद अच्छा नहीं कर पाते है तो सवाल तो उठेंगे ही। बहरहाल इनमें से किस एक नेता की विधानसभा पहुंचने की उम्मीद फतेहपुर उपचुनाव में पूरी होती है या फिर किसी अन्य चेहरे की एंट्री नया ट्विस्ट लाती है, ये देखना बेहद रोचक होने वाला है।
7 बार विधायक स्व.पठानिया
पूर्व मंत्री एवं फतेहपुर से कांग्रेस विधायक स्व. सुजान सिंह पठानिया 1977 से लेकर 2017 तक सात बार विधायक रहे। वह 1977, 1990, 1993, 2003 में ज्वाली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर आए। उसके बाद 2009 के उप चुनाव में भी ज्वाली से जीते थे। बदले परिसीमन के बाद वर्ष 2012 और 2017 के चुनाव में वे फतेहपुर सीट से जीते। सुजान सिंह पठानिया वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी माने जाते थे। वीरभद्र सरकार में वह दो बार प्रदेश के मंत्री भी रहे हैं। 1977 में सुजान सिंह पठानिया ने जनता पार्टी में शामिल होने के लिए सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। 1980 में सुजान सिंह पठानिया कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
पिछला उपचुनाव जीती थी कांग्रेस
करीब 12 साल बाद एक बार फिर फतेहपुर में उप चुनाव होने जा रहा हैं। इससे पहले 2009 में तत्कालीन विधायक डॉ राजन सिंह सुशांत के सांसद बनने के चलते उप चुनाव हुआ था। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रो प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। बावजूद इसके भाजपा उप चुनाव हार गई थी और सुजान सिंह पठानिया के दम पर कांग्रेस ने कमाल कर दिखाया था।
भवानी या फिर कोई और, स्थिति पेचीदा
फतेहपुर उपचुनाव में कांग्रेस दोराहे पर हैं। पार्टी सुजान सिंह पठानिया के पुत्र भवानी को टिकट देती हैं तो वंशवाद के नाम पर हल्ला मच जायेगा और परिवार से बाहर जाती हैं तो सहानुभूति कम हो सकती हैं और जिताऊ फैक्टर से समझौता करना पड़ सकता है। हालांकि फिलवक्त फतेहपुर उपचुनाव के लिए कांग्रेस से भवानी पठानिया का नाम आगे बताया जा रहा है, यानी एक बार फिर कांग्रेस परिवारवाद की नाव से चुनावी भवसागर पार करने का इरादा बना चुकी है। पर पार्टी में निशावर सिंह, सूरजकांत, चेतन चंबियाल, रीता गुलेरिया जैसे कई जमीनी नेता वंशवाद के खिलाफ मोर्चा खोल चुके है। बीते दिनों भवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ पार्टी के कई नेताओं -कार्यकर्ताओं ने खुलकर प्रदर्शन भी किया। वहीँ एक गुट खुलकर जय भवानी के नारे लगा रहा है। ऐसे में इस अंतर्कलह से जूझकर उपचुनाव जीतना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। ये देखना भी रोचक होगा कि पार्टी किसे टिकट देती है, भवानी पर भरोसा जताया जाता है या किसी अन्य कार्यकर्ता को मौका दिया जाता है।
‘कृपाल’ या ‘अबकी बार चक्की पार’
वैसे भाजपा की तरफ से फतेहपुर में सिर्फ कृपाल परमार ही फेस नहीं है, कृपाल के साथ-साथ यहां से प्रदेश भाजपा कार्यसमिति सदस्य बलदेव ठाकुर भी राजनीतिक सरगर्मियों को बढ़ाए हुए हैं। कृपाल परमार वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। बलदेव ठाकुर 2012 में भाजपा की टिकट से चुनाव लड़े लेकिन वह भी जीत हासिल नहीं कर सके थे । 2017 में बलदेव ठाकुर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ बतौर आजाद उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे और इसका फायदा कांग्रेस को मिला। अब फिर भाजपा के सामने 2017 की स्थिति है, कृपाल परमार पर पार्टी मेहरबान लग रही है और एक बार फिर वे भाजपा टिकट के सबसे मजबूत दावेदार दिख रहे हैं। हालांकि टिकट पर कोई निर्णय नहीं हुआ और सिर्फ कयास लग रहे है, बावजूद इसके परमार विरोधी खेमा अभी से एक्शन में है। विरोधी उन्हें बाहरी करार देकर उनके टिकट में रोड़ा अटकाने की फ़िराक में है। बीते दिनों मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम से पूर्व ‘अबकी बार चक्की पार’ के पोस्टर भी लग चुके है। ऐसे में भाजपा के लिए प्रत्याशी का चुनाव और उसके बाद की संभावित स्थिति से निपटना आसान नहीं होने वाला।
पीएम मोदी की रैली भी रही थी बेअसर
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फतेहपुर से कृपाल परमार को टिकट दिया था, पर तब बागी हुए बलदेव ठाकुर और राजन सुशांत ने पुरा खेल बिगाड़ दिया था। तब खुद पीएम मोदी ने फतेहपुर में जनसभा की थी लेकिन बाजी कांग्रेस मार ले गई। अब फिर भाजपा पर दबाव है। 2007 का विधानसभा चुनाव छोड़ दे तो फतेहपुर का वोटर अर्से से भाजपा पर मेहरबान नहीं दिखा है।
संभावित बगावत साधने को जद्दोजहद शुरू
संभावित बगावत साधने को भाजपा ने जद्दोजहद शुरू कर दी है। बीते दिनों प्रदेश सरकार ने बोर्ड -निगमों में रिक्त चल रहे पदों पर तीन नियुक्तियां की है जिनमें से एक फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में है, तो एक नजदीक लगते ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में। भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के भरयाल गांव निवासी ओमप्रकाश चौधरी को प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम कांगड़ा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जबकि जवाली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता संजय गुलेरिया को नेशनल सेविंग स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
ब्राह्मण प्लस कर्मचारी फैक्टर और आशावान दिख रहे डॉ राजन सुशांत !
पांच बार के विधायक और एक मर्तबा सांसद रहे डॉ राजन सुशांत का राजनीतिक सफर भाजपा से राह अलग करने के बाद हिचकोले खा रहा है। भाजपा छोड़ने के बाद राजन सुशांत पहले आम आदमी पार्टी में गए और अब हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संस्थापक है। राजन सुशांत एलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 2022 में सभी 68 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और आजकल वे पुरे प्रदेश में घूमकर अपनी जमीन तैयार करने में जुटे हैं। पर इस बीच उनके अपने गृह क्षेत्र फतेहपुर में उप चुनाव आ गया। अब बड़ा विज़न लेकर जनता के बीच घूम रहे डॉ राजन सुशांत को पहले खुद को घर में साबित करना होगा। पर ये स्थिति उनके लिए बड़ी पेचीदा हैं, अगर चुनाव लड़े और हार गए तो भी समस्या और न लड़े तो भी सवाल तो उठेंगे ही। बहरहाल माना जा रहा है कि डॉ राजन सुशांत चुनाव लड़ेंगे, पर यदि प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो सवाल उन पर ही नहीं उनकी पार्टी के भविष्य पर भी उठेंगे। गौरतलब है कि डॉ राजन सुशांत खुद फतेहपुर से 2017 का चुनाव लड़े थे लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया था। तब उनकी जमानत जब्त हो गई थी पर अब स्थिति थोड़ी बदली जरूर है। फतेहपुर निर्वाचन क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की बड़ी तादाद है, ऐसे में यदि अन्य दल राजपूत उम्मीदवारों को टिकट देते है तो राजन सुशांत को ब्राह्मण वोट से खासी आस होगी। साथ ही लगातार कर्मचारियों के मुद्दे उठाकर भी राजन सुशांत नए समीकरण साधने की कोशिश में है। यानी ब्राह्मण प्लस कर्मचारी फैक्टर के सहारे इस उपचुनाव में नई एक्शन देखने को मिल सकती है। माहिर मानते है यदि कांग्रेस और भाजपा से बागी मैदान में होंगे, तो डॉ राजन सुशांत को इसका भरपूर लाभ मिल सकता है।
अजब राजनीति : परिवारवाद पर ‘कांग्रेस’ विरुद्ध ‘कांग्रेस’
फतेहपुर कांग्रेस में फिलवक्त हाई वोल्टेज ड्रामा जारी है। उपचुनाव में टिकट को लेकर कार्यकर्ता आपस में लड़ रहे है। यहां कुछ समय पहले तक टिकट का पहला दावेदार पूर्व विधायक सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया का माना जा रहा था। परन्तु अब समीकरण बदल गए है। फतेहपुर कांग्रेस के एक गुट ने परिवारवाद का मुद्दा उठाकर उपचुनाव में भवानी सिंह पठानिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह गुट भवानी को छोड़कर किसी भी अन्य स्थानीय नेता या कार्यकर्ता को प्रत्याशी घोषित करने की पैरवी कर रहा है। ‘कार्यकर्ता को सम्मान दो’, ‘कार्यकर्ता को टिकट दो’ के नारे के साथ ये कांग्रेसी सड़क पर उतर आए है। इस गुट में स्थानीय कांग्रेस नेता निशवार ठाकुर, चेतन चंबियाल, रीता गुलेरिया और राघव पठानिया मुख्य तौर पर सामने आये है। इनका कहना है कि भवानी सिंह पठानिया पैराशूट उम्मीदवार है और उनकी जमीनी पकड़ नहीं है। उन्होंने कभी पार्टी का झंडा तक नहीं उठाया और अब अचानक टिकट के लिए सामने आ गए। ऐसे में पार्टी उनके स्थान पर किसी आम कार्यकर्ता को टिकट दे जिसने पार्टी के लिए अपना पसीना बहाया हो। उधर भवानी सिंह पठानिया मैदान में डटे हुए है। भवानी का कहना है कि वे लोगों के कहने पर राजनीति में आये है। स्थानीय कांग्रेस के चार बड़े चेहरों ने बेशक उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया हो लेकिन बावजूद इसके भवानी को साथ और समर्थन की कमी नहीं दिख रही। ‘जय भवानी’ का नारा अभी से फतेहपुर में बुलंद है और समर्थक भवानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते दिख रहे है। ऐसे में भवानी तमाम विरोध के बावजूद टिकट के प्रबल दावेदार है।
कांग्रेस में परिवारवाद पर जंग छिड़ी है, पर भाजपाई खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे। माजरा यूँ है कि जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में भाजपा भी स्व.नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा को टिकट दे सकती है। ऐसे में यदि भाजपाई फतेहपुर में कांग्रेस के परिवारवाद पर सवाल उठाएंगे तो जुब्बल कोटखाई में क्या जवाब देंगे। जिस तरह फतेहपुर में कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है उसी तर्ज पर जुब्बल कोटखाई में नीलम सरैक सहित कई नेता बरागटा परिवार के खिलाफ मुखर है।