शिमला 17 अप्रैल । जुन्गा क्षेत्र के जंगलों में इन दिनों फूलों से लदे कचनार के वृक्ष जंगलों की शोभा बढ़ा रहे है । कचनार की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ साथ औषधीय गुणों से भरपूर है । आयंुर्वेद में कचनार का उपायोग विभिन्न रोगों की दवाई बनाने के लिए किया जाता है । गौर रहे कि कचनार के वृक्ष जंगलों में स्वतः ही उगे होते है जिसमें बसंत ऋतु में लगने वाली पंखुड़ियां व फूल का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जियों के लिए किया जाता है । जोकि विषैले तत्व से रहित व जैविक गुणों से भरपूर है । कचनार, जिसे लोग स्थानीय भाषा में करयालटी भी कहते हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग सब्जी व रायता बनाने के लिए किया जाता है । कचनार की कलियों का आचार बहुत ही स्वादिष्ट होने के साथ साथ औषधी का काम भी करता है ।
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ0 विश्वबंधु जोशी के अनुसार कचनार की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है और कचनार की छाल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के बनाने में भी किया जाता है । इनका कहना है कि कचनार की छाल का शरीर के किसी भाग की गांठ को गलाने में सबसे उत्तम औषधी है । इसके अतिरिक्त रक्त विकार, त्वचा रोग जैसे खाज-खुजली, एक्जीमा, फोड़े-फंूसी के उपचार में इसकी छाल उपयोग में लाई जाती है ।
पूर्व प्रधान अतर सिंह ठाकुर एवं प्रीतम ठाकुर का कहना है कि इन दिनों गांव में जंगली शुद्ध सब्जियों की बहार आई है जिनमें कचनार, काथी की कोपलें, रामबाण के गोव्वा, फेगड़े, खड़की के कोमल पत्ते, खडडों में उगने वाली छूछ इत्यादि जंगली सब्जियां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । इनका कहना है कि बाजार से मिलने वाली सब्जियां के संक्रमित होने की संभावना के चलते लोग कम खरीदतें हैं । इनका कहना है कि युवा पीढ़ी को जंगली सब्जियां ज्यादा पसंद नहीं करते हैं परंतु इनके उपयोग से अनेक रोगों से बचाव होता है।
फूलों से लदे कचनार के वृक्ष बढ़ा रहे जुन्गा क्षेत्र के जंगलों की शोभा

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