शिमला
राजधानी में खतरा बने पेड़ो को काटने के लिए मनमाने पैसे मांगे जा रहे है। इस आपदा की घड़ी में अगर किसी के घर पर पेड़ का खतरा है तो उससे 50 हजार से लेकर 65 हजार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। शाखाएं काटने तक के 15 से 30 हजार रुपये लिए जा रहे हैं।
अनिता भारद्वाज, डीएफओ शिमला शहरी,वन विभाग ने बताया की हमारे साथ कश्मीरी मजदूर काम करते है वही पेड़ो को टुकड़ों में काटकर सुरक्षित तरीके से नीचे उतारते है। विभाग ने इन मजदूरों के साथ चार टीमें भी बनाई हैं जो एसडीएम की मंजूरी के बाद पेड़ काटती हैं। ये विभाग से आठ से दस हजार रुपये प्रति पेड़ के हिसाब से पैसा लेते हैं।
हालांकि, वन विभाग के अनुसार अभी तक विभाग की ये टीमें सिर्फ वन या सरकारी भूमि पर खड़े खतरनाक पेड़ ही काट रही हैं। सड़कों या सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान को देखते हुए ही ये टीमें निजी जमीन से पेड़ काटती हैं। ज्यादातर मामलों में यदि पेड़ निजी जमीन पर खड़ा है तो उसे खुद भवन मालिक को कटवाना पड़ेगा।
हमारी टीमें शहर में पेड़ तो काट रही है लेकिन एक दिन में छह से आठ खड़े पेड़ ही काट पाती हैं। इसके अलावा गिरे हुए पेड़ काटने का जिम्मा भी इनके पास है। शहर में 500 से ज्यादा पेड़ों को काटने के आवेदन आए हैं। इनमें से यदि 150 पेड़ भी काटने की मंजूरी एसडीएम से मिलती है तो टीम को इन्हें काटने में एक महीना लग जाएगा। लोग वन विभाग और लोक निर्माण विभाग से भी मजदूर पेड़ काटने के लिए बुला रहे हैं। ये एक पेड़ का 10 से 20 हजार रुपये वसूल रहे हैं।
एसडीएम की मंजूरी के तुरंत बाद खतरनाक पेड़ कटवाए जा रहे हैं। विभाग की टीमें सरकारी जमीन पर खड़े खतरनाक पेड़ ही काट रही हैं। नियमानुसार निजी जमीन पर खड़े पेड़ लोगों को खुद कटवाने होंगे। शहर में खड़े पेड़ों को सुरक्षित तरीके से काटने वाले मजदूरों की कमी है। इसके चलते कई जगह से मनमाने शुल्क वसूलने की शिकायतें आ रही हैं। – अनिता भारद्वाज, डीएफओ शिमला शहरी