शिमला 20 नवंबर । सर्दियों मंे मवेशियों के लिए चारा स्टोर करने के लिए इन दिनों क्योंथल क्षेत्र में महिलाएं घास काटने में दिनरात जुटी है ताकि आगामी चार माह के दौरान बर्फबारी व वर्षा होने पर पशुओं को भरपूर चारा मिल सके । बता दें कि हर वर्ष अक्तूबर अर्थात अश्वनी व कार्तिक माह के दौरान घास कटाई के अलावा किसान मक्की व दलहन की फसलें एकत्रित करने में काफी व्यस्त रहते हैं।
महिलाएं प्रातः होते ही दोपहर का भोजन साथ लेकर घासनियों में चली जाती है । घास को काटने के लिए अक्सर गांव की महिलाएं एकत्रित होकर क्रमवार सभी का घास काटने में हाथ बंटाती है जिसे स्थानीय भाषा में गसाई अथवा नलाई कहा जाता है । इस दौरान महिलाओं द्वारा मनोविनोद व विभिन्न मुददों पर चर्चा भी की जाती है जिससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है । ग्रामीण महिलाएं शारीरिक रूप से इतनी सशक्त होती है कि घास व लकडी का करीब डेढ व दो मन का बोझ चार -पांच किलोमीटर से पीठ पर घर लाती है । घास को घर लाकर एक जगह इकटठा करके रखा जाता है जिसे स्थानीय भाषा में गोमट कहा जाता है । बता दें कि गोमट में रखा घास बारिश होने पर भी भीतर से सूखा रहता है ।
गौर रहे कि दीपावली से पहले खेती के कार्यों से निपटाना किसानों द्वारा लक्ष्य रखा होता है ताकि दीवाली त्यौहार घर पर आन्नद से मना सके । इस दौरान यदि बारिश हो जाती है तो किसानों को गेहूं अर्थात रबी फसल की बुआई करनी पड़ती है । सबसे अहम बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों मे पारस्परिक सहयोग अर्थात बुआरा प्रथा बदलते परिवेश में कायम है । इन दिनों घास के अतिरिक्त मक्की की फसलें तैयार हो चुकी है जिसे काटकर घर लाया जाता है और आंगन व घरों की छतों पर रखकर सुखाया जाता है । मक्की के टांडे पशुओं को खिलाने के काम आते हैं । अतीत में मक्की के टांडों को जलाकर उसकी राख से गांव में लोग कपड़े धोया करते थे । प्रगतिशील किसान प्रीतम सिंह ठाकुर का कहना है कि अक्तूबर माह के दौरान किसानों की हालत बहुत दयनीय होती है । दिन छोटे के कारण समय पर घास व खेती का कार्य निपटाना एक चुनौती होती है । इनका कहना है कि बदलते परिवेश में अब किसानों का रूझान नकदी फसलों की ओर बढ़ा है तथा मक्की व दालों का उत्पादन कम होने लगा है । नकदी सब्जियों के उत्पादन से ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिकी में क्रंातिकारी परिवर्तन देखने को मिला है