केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला द्वारा एकबार फिर बीए आनर्स को शास्त्री की उपाधि देने पर हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् तथा हिमाचल राजकीय संस्कृत महाविद्यालय प्राध्यापक संघ व संस्कृत महाविद्यालयों के पूर्व प्राचार्यों व आचार्यों ने इसके विरोध में आवाज बुलंद कर दी है।
संस्कृत परिषद् के अध्यक्ष डॉ. मनोज शैल एवं संस्कृत महाविद्यालय संघ के अध्यक्ष डॉ़ मुकेश शर्मा ने संयुक्त रूप से कहा कि सीयू का यह निर्णय तर्क संगत नहीं है इससे शास्त्रों का पारंपरिक अध्ययन बाधित हो जाएगा जिससे सीयू का संस्कृत और संस्कृति को बढ़ावा देने एवं शास्त्रीय परम्परा को संरक्षित करने का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि हिमाचल में लगभग 25 सरकारी व गैर सरकारी संस्कृत महाविद्यालय संचालित हैं इस निर्णय से वे सभी प्रभावित होंगे क्योंकि इन संस्कृत महाविद्यालयों के संचालन का उद्देश्य विशुद्ध रूप से शास्त्रीय ग्रन्थों का पठन-पाठन है ताकि छात्र संस्कृत शास्त्रों के मूल तत्व को समझ सकें । यदि सीयू के निर्णय के बाद प्रदेश में हर जगह बीए आनर्स को शास्त्री उपाधि देने का विचार हो गया तो भविष्य में कोई भी शास्त्री करने संस्कृत महाविद्यालय में नहीं जाएगा जब बीए करके शास्त्री की डिग्री मिल जाएगी तो कोई क्यों पारम्परिक अध्ययन के लिये संस्कृत महाविद्यालय जाएगा, जिससे देवभूमि हिमाचल में शास्त्र संरक्षण की परम्परा की धारा लुप्त हो जायेगी।
उमनोज शैल व मुकेश शर्मा ने कहा कि इस विषय पर परिषद् के फेसबुक पेज पर प्रतिदिन सायं सवा पांच बजे से संस्कृत महाविद्यालयों की स्थापना का उद्देश्य व शास्त्री उपाधि की महत्ता पर लाईव परिचर्चा आरम्भ की गई है जिसमें अभी तक संस्कृत महाविद्यालयों के पूर्व प्राचार्यों में डॉ़ लीलाधर वात्स्यायन, डॉ़ ओमदत्त सरोच, डॉ. केशवानन्द कौशल, आचार्य रामानन्द , आदर्श संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुदेश गौतम, संस्कृत महाविद्यालय डोहगी के सहाचार्य डॉ. कृष्ण मोहन पाण्डेय, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय कैथल हरियाणा के सहायक आचार्य डॉ नवीन शर्मा, संस्कृत महाविद्यालय क्यारटू के डॉ. दिनेश शर्मा, सुन्दर नगर के डॉ ज्ञानेश्वर शर्मा, संस्कृत शिक्षक परिषद् के डॉ. अमित शर्मा , डॉ. अमनदीप शर्मा, डॉ.गिरीराज गौतम ने परिचर्चा में भाग लिया है और हजारों दर्शकों ने इसको देखकर समर्थन किया है। सभी विद्वानों ने सीयू के कुलपति से बीए आनर्स को शास्त्री उपाधि देने की स्वीकृति प्रदान न करने का अनुरोध किया है ।