शिमला
हिमाचल प्रदेश के बहुचर्चित युग हत्याकांड मामले में बड़ा अपडेट सामने आया है। हिमाचल हाईकोर्ट ने इस मामले के दो दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। वहीं, तीसरे आरोपी को बरी कर दिया गया है। विशेष खंडपीठ के न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला ने आज अपने फैसले में कहा कि चंद्र शर्मा और विक्रांत बख्शी अब पूरी उम्र जेल में रहेंगे। जबकि तेजिंदर पाल को अदालत ने बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने यह फैसला दोषियों की अपील पर सुनाया।
पीड़ित पिता ने जताया असंतोष
युग के पिता विनोद गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्टि नहीं जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें न्याय नहीं मिला और वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। पीड़ित पिता का कहना है कि उनके बेटे की निर्मम हत्या कर दी गई। सत्र न्यायालय ने आरोपियों को सजा-ए-मौत सुनाई थी, लेकिन अब हाईकोर्ट ने दो दोषियों की सजा उम्रकैद में बदल दी और एक को बरी कर दिया।
परिजन इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और उन्होंने कहा कि अब वे सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। पिता ने बताया कि सारे सबूत अदालत में पेश किए गए, लेकिन उनके बेटे को न्याय नहीं मिला। उन्होंने कहा, “आज हमारा बच्चा 15 साल का होता, लेकिन **11 साल बाद भी हमारे बेटे को न्याय नहीं मिला। जिस आरोपी को बरी किया गया, वह इस मामले में मुख्य भूमिका निभा रहा था। इसी की गाड़ी में हमारे बच्चे को ले जाया गया था।”
मामला जिसने पूरे प्रदेश को झकझोरा
यह दुखद मामला तब सुर्खियों में आया जब 4 वर्षीय मासूम युग की निर्मम हत्या ने पूरे प्रदेश को सदमे में डाल दिया। 14 जून 2014 को शिमला के रामबाजार क्षेत्र से युग का अपहरण किया गया। जांच में सामने आया कि अपहरणकर्ता उसके अपने ही पड़ोसी चंद्र शर्मा, तेजिंदर पाल और विक्रांत बख्शी थे। अपहरण के बाद आरोपियों ने युग के पिता से 3.5 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी। रकम नहीं मिलने पर मासूम को पत्थर बांधकर जलभराव टैंक में फेंक दिया गया, जो भराड़ी इलाके में स्थित था। युग का कंकाल दो साल बाद, अगस्त 2016 में बरामद हुआ।
मासूम युग की हत्या की खबर ने शिमला ही नहीं, पूरे हिमाचल प्रदेश में आक्रोश पैदा कर दिया था। जगह-जगह कैंडल मार्च और रैली आयोजित की गई, लोगों ने युग के लिए न्याय की मांग की।
न्याय प्रक्रिया और तेज़ फैसला
राज्य CID ने मामले की जांच की। 25 अक्टूबर 2016 को चार्जशीट दाखिल हुई और 20 फरवरी 2017 से मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। कुल 135 गवाहों में से 105 ने अदालत में बयान दिए। सत्र न्यायाधीश की अदालत ने 6 सितंबर 2018 को तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। न्यायाधीश विरेंद्र सिंह ने इस हत्याकांड को दुर्लभतम मामलों में रखा और तेजी से फैसला सुनाया।










