प्राकृतिक गुणों से भरपूर हिमाचल प्रदेश के संभाग में बसा सोंदर्य पूर्ण और स्वच्छ गांव ,जिन्हें सरकारी कार्यालयों में क्यामों तथा वास्तविक नाम कियमो के नाम से जाना जाता है।अपने में मिसाल कायम बना हुआ कियमो गांव में आज तक कोरोना का कोई मामला नहीं आया।
हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पिती में बसा स्पिती तोद वेली के कियमो गांव। जिसे प्रशासनिक तथा सरकारी कार्यालयों में क्यामों के नाम से जाना जाता है। इस गांव को आज क्यामों के नाम से जाना जाता हैं लेकिन वास्तविक मूल नाम कियमो हैं। भोटी भाषा में कियमो या कितमो का मतलब खुशहाली तथा समृद्ध है। आज भी कियमो को क्यामों से जाना जाने वाला यह गांव प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं। चारों और से घिरे ऊंचे-ऊंचे पहाड़, पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ़ के मोटे परत देखने को मिलता है। सात महीने तक बर्फ़ से ढके रहते हैं स्पिती घाटी और कियमो गांव। गर्मियों के मौसम में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गांव में कई प्रजातियां के जड़ी बूटियां और पेड़ पोधे उगते हैं। कियमो के लौगो का आय का एक मात्र स्तोत्र कृषि से ही हौता है, अपने आजीविका के लिए यहां जौ, हरा मटर तथा काला मटर और आलू की बिजाई करता है। अपने परांपरागत जौ के आटे जिसे सम्पा कहते हैं। अपने इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए प्रोटीन युक्त सम्पा खाते हैं सम्पा का थुकपा भी पीते हैं। यही कारण इस गांव में और गांव के लोगों को अभी तक कौरौना का मामला नहीं आया।
सर्दियों के छह सात महीने बर्फ़बारी वरदान और अभिशाप दोनों है:
जिस वर्ष बर्फबारी ज्यादा होता है अगले वर्ष मटर, जौं के फसलों की पैदावार अधिक होती है! जिससे किसानों को बैहतर आमदनी बनी रहती है!
कियमो गांव के लोगों का कहना है कि सर्दियों में बुजुर्गों, बच्चों ,छात्रों और प्रस्तूता महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई मर्तबा चार पांच फुट बर्फ पड़ जाता है और महीने भर शेष दुनिया से कटा रहता है।। एक तो गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है , जिसके कारण बीमारियों से निजात पाना नामुमकिन हो जाता हैं।
कियमो गांव जिसे आज क्यामों के नाम से जाना जाता हैं वहीं गांव का विकास भी दूर दूर तक नज़र नहीं आता है ।










