राजगढ़ का बैशाखी मेला आज से
राजगढ़ 12 अप्रैल । प्रदेश के धार्मिक एवं प्राचीन मेलो की श्रृखंला में कालान्तर से राजगढ़ क्षेत्र के आराध्य देव ῾शिरगुल̕ के नाम पर हर वर्ष बैशाख माह की संक्रांति को मेले का आयोजन किया जाता है । इस वर्ष यह मेला 13 से 15 अप्रैल, 2024 तक नेहरू ग्राउंड राजगढ़ में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है ।
राजगढ़ का बैशाखी मेला प्रदेश के प्रसिद्व प्राचीन मेलों में से एक है। बैशाख मास की संक्रान्ति को इसका आयोजन होने से इसका नाम बैशाखी मेला पडा है जबकि पंजाब में मनाए जाने वाले बैशाखी पर्व से इस मेले का कोई सरोकार नहीं है। राजगढ़ शहर के अस्तित्व में आने से पहले यह मेला सबसे पहले कुलथ के समीप कूफरधार और उसके बाद ῾सरोट के टिब्बे̕ पर मनाया जाता था। अतीत में इस टिब्बे पर ῾शिरगुल देवता̕ का छोटा सा मंदिर हुआ करता था जिसे शहर के अस्तित्व में आने के उपरान्त राजगढ़ मे स्थानान्तरित किया गया था। स्थानीय वरिष्ठ नागरिकों के अनुसार कि कालान्तर से ही राजगढ़ मेला पूरे क्षेत्र के लोगो के लिए मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था। उनका कहना था कि लोग सरोट के टिब्बे पर ῾शिरगुल मंदिर̕ में नमन करने के साथ मेले का भी भरपूर आन्नद उठाते थे। लोगो का विश्वास आज भी कायम है कि शिरगुल देवता के मेले के आयोजन से समूचे क्षेत्र में कभी भी महामारी के फैलने तथा ओलावृष्टि का भय नहीं रहता है और शिरगुल देवता की अपार कृपा से क्षेत्र में खुशहाली और समृद्धि का सूत्रपात होता है।
गौर रहे कि इस क्षेत्र के अराध्य देव शिरगुल का प्रार्दुभाव राजगढ़ से लगभग 17 किलोमीटर दूरी पर शाया छबरोण और तपस्थली चूड़चांदनी पर्वत माने जाते हैं । मेले की प्राचीन गरिमा बनाए रखने और इसे आकर्षक व मनोरंजक बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा इसे῾जिला स्तरीय बैशाखी मेले̕ का दर्जा दिया गया है। हर वर्ष यह मेला बैशाख मास की संक्रान्ति से आरंभ होकर तीन दिन तक चलेगा । मेले का शुभारंभ 13 अप्रैल को राजगढ़ शहर में स्थित शिरगुल देवता की पारम्परिक पूजा ओर शोभा यात्रा से होता है। मेले को आकर्षक बनाने के लिए मेला समिति के अध्यक्ष एवं एसडीएम राजगढ़ राजकुमार ठाकुर ने बताया कि मेला के आयोजन के लिए सभी आवश्यक प्रबंधक कर दिए गए हैं । मेले की तीनों संध्याओं में सांस्कृतिक कार्यक्रम का विशेष आयोजन किया गया है जिसमें प्रदेश के प्रसिद्ध लोक कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। मेले के अंतिम दिन 15 अप्रैल को विशाल दंगल होगा जिसमें उत्तरी भारत के नामी पहलवान भाग लेंगें।
मेलों एवं उत्सवों के आयोजन से जहां लोगो को आपसी मिलने-जुलने के अवसर प्राप्त होते है वहीं पर युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति का बोध होता है और संस्कृति के सरंक्षण के साथ-साथ राष्ट्र की एकता व अखण्डता को भी बल मिलता है।