बदलते परिवेश के बावजूद भी क्योंथल क्षेत्र में बुआरा प्रथा की परंपरा आज भी कायम है जोकि सहकारिता का एक जीवंत उदाहरण माना जाता है । बुआरा प्रथा से ही हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला के गांव पंजावर से सहकारिता आन्दोलन की नींव रखी गई थी जिसका अनुसरण देश के सभी राज्यों द्वारा किया गया है । गौर रहे कि अतीत से ही ग्रामीण क्षेत्रों में एक दूसरे की मदद करने की सकारात्मक भावना होती थी ।
गांव में धार्मिक व समाजिक कार्यों में तो लोग बढ़चढ़ कर अहम भूमिका निभाते ही हैं परंतु व्यक्तिगत तौर पर यदि कोई व्यक्ति खेती बाड़ी के कार्य में पिछड़ जाए तो गांव के सभी लोक मिलकर सहायता करते हैं ।
पीरन गांव के जबर सिंह ठाकुर का कहना है कि भौतिकवाद और आधुनिकता की दौड़ में बुआरा प्रथा का प्रचलन काफी कम होने लगा है इसके बावजूद भी बुआरा प्रथा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जिंन्दा है । इनका कहना है कि गांव में खेत में गोबर ढोने, घास काटने, मक्की की गुड़ाई करने इत्यादि कार्याें के लिए बुआरा किया जाता है जिसमें हर घर से एक व्यक्ति अनिवार्य रूप से भाग लेते हैं । जबकि गांव के सामूहिक कार्य में लोगों द्वारा दिए गए सहयोग को हैल्ला कहते हैं। उन्होने कहा कि बुआरा और हैल्ला के दौरान लोग आपस में पहाड़ी भाषा में हास्य व व्यंग्य मजाक करते हैं जोकि मनोरंजन का एक प्राकृतिक साधन हुआ करता था। अर्थात काम करते हुए हंसी मजाक के महौल से खुशनुमा बन जाता है ।
दूसरी ओर जिस घर में बुआरा किया जाता है वहां पर रात्रि को पहाड़ी व्यंजन बनाए जाते है और सभी बुआरा में आए लोग व बच्चे एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं । कहा कि समाजिक सारोकार से जुड़ी इस प्रथा में लोगों में आपसी प्यार, सदभावना और पारस्परिक सहयोग की भावना उत्पन्न होती है जिससे राष्ट्र की एकता और अखंडता को बल मिलता है ।










