तेजतर्रार नेत्री व दलित चेहरा दयाल प्यारी ने वीरवार को कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में कांगे्रस का हाथ थाम लिया है। हिमाचल कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला व पवन बंसल की मौजूदगी में दयाल प्यारी ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। सिरमौर के पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाली दयाल प्यारी के कांग्रेस में आने से कई राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करती दयाल प्यारी
विधानसभा के उप चुनाव में बीजेपी से बगावत करने के बाद दयाल प्यारी ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने सांसद बनने के बाद विधायक के पद से इस्तीफा दिया था। कांग्रेस के शीर्ष नेता गंगूराम मुसाफिर को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। विधानसभा के उप चुनाव में हालांकि दयाल प्यारी तीसरे स्थान पर रही थी, लेकिन 21.56 प्रतिशत वोट हासिल कर अपनी ताकत का अहसास करवा दिया था।
कांग्रेस ने भी अब दयाल प्यारी को अपने पाले में लाकर दलित कार्ड खेला है। उप चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी भाजपा की रीना कश्यप को 22,048 वोट हासिल हुए थे, जबकि कांग्रेस के गंगूराम मुसाफिर ने 19,306 मत प्राप्त किए थे। वहीं दयाल प्यारी ने अकेले ही अपने दम पर उस समय 11,651 वोट हासिल किए थे, जब पूरी भाजपा सरकार ने उप चुनाव में जोर लगा रखा था। पच्छाद सीट पर भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगा दी थी। इस कारण कांग्रेस का काफी मनोबल गिरा हुआ था।
अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली दयाल प्यारी ने उस समय भी इस बात का ऐलान कर दिया था कि वो 2022 का विधानसभा चुनाव लडेगी। तीन बार जिला परिषद का चुनाव जीत चुकी दयाल प्यारी एक बार जिला परिषद की चेयरपर्सन भी रही है। खास बात यह भी थी कि वो तीन अलग-अलग वार्डों से जिला परिषद का चुनाव जीती थी।
हाल ही के पंचायतीराज चुनाव में बागपशोग की जिला परिषद सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। यहां से जीती निर्दलीय उम्मीदवार ने लाख कोशिशों के बाद भी बीजेपी को समर्थन नहीं दिया। एक सीट की कमी के कारण भाजपा ने हालांकि कांग्रेस की एक विजयी उम्मीदवार को तोड़कर अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का पद तो हासिल कर लिया था, लेकिन डगर काफी मुश्किल हो गई थी।
जिला परिषद की पूर्व अध्यक्षा दयाल प्यारी ने कहा कि कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी को ज्वाइन किया है। उन्होंने कहा कि वो कांग्रेस की सदस्यता को लेकर विस्तार से बाद में चर्चा करेंगी। अलबत्ता ये जरूर कहा कि उनके ससुर 1977 से जनसंघ से जुड़े हुए हैं। अब भाजपा से अलग हुई हू तो जख्म गहरे ही होंगे।