पर्यटकों को आकर्षित करते है यहाँ के अनेकों मेले और त्यौहार।
हिमाचल प्रदेश जिला कुल्लु में उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी समेत यहां के विभिन्न क्षेत्रों में प्रति वर्ष की भान्ति इस बार भी तीन दिवसीय प्राचीनतम मुखौटा फागली उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। तीर्थन घाटी के गांव तिंदर, पेखड़ी, नाहीं, डिंगचा, सरची, फरयाडी, गरुली और कलवारी आदि गांव के अलावा बंजार क्षेत्र के थनी-चैड़ा, देउठा, वीणी, जिभि, बाहु और बेहलो आदि गांवों में फागुन सक्रान्ति के दिन 13 फरवरी से ही फागली उत्सव का आगाज हो जाता है।
विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए विख्यात तीर्थन घाटी में अब यहां के मेले और त्यौहार भी पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। यहाँ की प्राचीनतम परम्पराएं एवं संस्कृति यहां की पहचान है। तीर्थन घाटी में हर साल अनेकों मेलों और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है जो यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को बखूबी दर्शाता है। ये मेले और त्यौहार यहां के लोगों के हर्ष उल्लास और खुशी का प्रतीक है। मेलों और त्यौहारों के माध्यम से ही लोगों के आपसी सम्वन्ध मजबूत होते है। तीर्थन घाटी के कुछ गावों में यह फागली उत्सव एक दिन तथा कई गांव में तीन चार दिनों तक धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
तीर्थन घाटी में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले अनेकों मेले और त्यौहार भी देसी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रहे है। इस बार मुखौटा उत्सव में स्थानीय बच्चों, युवक, युवतियोंं, स्त्री पुरुषों के अलावा बाहरी राज्यों से आए पर्यटको ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया। कुछ पर्यटक इस मुखोटा नृत्य को अपने कैमरों में कैद करते दिखे गए।
तीर्थन घाटी के मुखौटा उत्सव फागली में स्थानीय गांव से अलग अलग परिवार के पुरुष सदस्य अपने अपने मुँह में विशेष किस्म के प्राचीनतम लकड़ी के मुखौटे लगाते है और एक विशेष किस्म का ही पहनावा पहनते हैं। हर गांव में पहने जाने वाले मुखोटों तथा पहनावे में कई किस्म की विभिन्नता पाई जाती है इसके अलावा हर गांव में मनाए जाने वाले मुखौटा उत्सव की मान्यताए और तौर तरीके भी अलग अलग होते है। फागली उत्सव के दौरान दो दिन तक मुखोटा धारण किए हुए मडयाले हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं। इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियाँ देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है।
स्थानीय लोग और मंढयाले देवता विष्णु नारायण की पूजा अर्चना करके साल भर तक समय पर बर्षा, अच्छी फसल और सुख समृद्धि की कामना करते है।
पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है और दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है जिसमे मुखौटे पहने हुए मंढयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते है। इस दौरान अन्य कई पारंपरिक रीति रिवाजों का निर्वहन किया जाता है और गांव के हर घर में कई प्रकार के पारम्परिक व्यंजन भी बनाए जाते है।