शिमला के IGMC में क्या डॉ राहुल गलत की मरीज गलत, यह एक बड़ा सवाल है. जिस डॉक्टर को कुछ साल पहले अपने काम के लिए प्रशंसा मिली थी आज उसी को सरकार ने अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए टर्मिनेट कर दिया है।
शिमला
सरकार डॉक्टर पर कार्रवाई करके पल्ला झाड़ रही है, जनता की आंखों में धूल झोंक रही है, बिना यह सोचे कि ओवरलोडेड सिस्टम से डॉक्टरों का मनोबल और टूटेगा और मरीजों की मुसीबत बढ़ेगी।
जनक राज विद्यायक ने कहा आईजीएमसी में हुआ झगड़ा कोई सामान्य मामला नहीं बल्कि यह सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की घोर नाकामी का करारा सबूत है।
यह है व्यवस्था परिवर्तन खोखले दावों वाली स्वास्थ्य व्यवस्था, प्रशासनिक लापरवाही और सरकार की नाकामी का जीता-जागता प्रमाण। मेरे कुछ सवाल है
1.क्या मरीज़ अपराधी हैं?
2.क्या अस्पताल प्रताड़ना केन्द्र बन गए हैं एक बेड पर दो तीन मरीज, जाँच और ऑपरेशन के लिए लम्बा इंतज़ार
3.क्या डॉ और मरीज एक दूसरे के दुश्मन हैं ?
सरकार ने प्रदेश में अस्पतालों अव्यवस्था का अड्डा बना दिया
1. स्टाफ की भारी कमी
2.घंटों इंतजार
3.सुरक्षा का अभाव
4.शिकायत निवारण की कोई व्यवस्था नहीं।
उन्होंने कहा यह सब सरकार की नीतिगत विफलता का सीधा परिणाम है—डॉक्टर और मरीज दोनों पीड़ित, इसका केवल एक ही कारण है,सरकार की लापरवाही।
डॉ जनक राज ने सदन में भी पूछा था सरकार ने अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने और स्टाफ की कमी को पूरा करने की बजाए 180 करोड़ के छह रोबोट खरीदना जरूरी क्यों समझा ? तब सरकार ने कहा जनता की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लिया है निर्णय।
इस फैसले से क्या अब डॉक्टर को लेकर हर जगह protest नहीं होंगे जिसे सिर्फ मरीज पर ही बोज बढ़ेगा। वैसे भी लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार लोगों के हितों के लिए काम करती है संविधान में ऐसा लिखा है पर यह सरकार अपने हितो के लिए कर रही काम।










