भारतीय सेना के शौर्य, साहस, कर्तव्यनिष्ठा से प्रेरित होकर आगे बढ़ें हर हिन्दुस्तानी
भारत की अखंडता और भारत राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए भारतीय सेना मुख्य व अतुलनीय भूमिका निभाती है। भारतीय सेना के शौर्य और अदम्य साहस और कर्तव्यनिष्ठा की बदौलत ही हर भारतीय की रक्षा और अधिकार आज सुरक्षित हैं। हमारी भारतीय सेना विश्व की उन सेनाओं में से एक है जिनके साहस और शौर्य के आगे विश्व के शक्तिशाली कहे जाने वाले देश नतमस्तक होते हैं ।
हमारे यहाँ यह परंपरा रही है कि वीर ही इस धरा यानि वसुंधरा का भोग करेगा । “वीर भोग्य वसुंधरा” एक संस्कृत व्याकांश है जिसका अर्थ है “वीर ही इस धरती का भोग करेगा” या “यह धरती वीरों के लिए उपयुक्त है।” यह कथन यह व्यक्त करता है कि जो लोग साहसी और दृढ़ होते हैं, वही इस दुनिया में सफल होते हैं और समृद्धि प्राप्त करते हैं। यह वाक्यांश लोगों को साहसी कदम उठाने और चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है और यह संदेश देता है कि जीवन में अपने उचित हिस्से को प्राप्त करने के लिए साहसी बनना पड़ता है। यही प्रेरणा हमारे पुराणिक शास्त्र, महाकाव्य जैसे महाभारत, रामायण और कई वेद-पुराणों से सदैव मिलती रही है लेकिन बाद के युगों में हिंदुस्तान में शास्त्र के साथ शस्त्र विद्या से कई समाज वंचित होकर विदेशी आक्रांतों के सामने झुक गए या फिर मारे गए या फिर गुलामी स्वीकार कर ली। यह हमारे वेदों में ठीक ही कहा “वीर भोग्य वसुंधरा। “ यह संस्कृत मुहावरा न केवल भारतीय संस्कृति में बल्कि सामरिक और दार्शनिक संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका शाब्दिक अर्थ है, “वीर ही इस धरती का भोग करेगा।” यह वाक्यांश साहसिकता और निर्भीकता को बढ़ावा देता है और समझाता है कि किस प्रकार जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए वीरता और दृढ़ संकल्प अनिवार्य हैं। साहस और वीरता के बिना व्यक्ति और राष्ट्र अपने जीवन में उच्च लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकते। यह सामरिक वाक्यांश यह सिखाता है कि विषम परिस्थितियों में भी जो व्यक्ति निडर होकर आगे बढ़ता है वही समाज और जीवन में विजयी होता है, यह वाक्यांश व्यक्ति को अपने डर का सामना करने और दुश्मन से लड़ने के लिए अपनी सीमाओं को पार करने की प्रेरणा भी देता है। हमारी भारतीय सेना ठीक इस वाक्यांश पर सटीक बैठती है। इतिहास साक्षी है कि महान नेता और योद्धा अपनी वीरता के बल पर ही साम्राज्य स्थापित कर पाए हैं। चाहे वह चाणक्य की नीतियाँ हों या शिवाजी महाराज का गुरिल्ला युद्धकौशल , सभी ने “वीर भोग्य वसुंधरा “ के मूल सिद्धांत का अपनाया था और यही सिद्धांत हमारी भारतीय सेना में भी अपनाया जाता है। आज भी हमारे देश में “वीर भोग्य वसुंधरा” की परंपरा की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है बल्कि यह हमारी सेना और कुछ राजपूत समाजों में रची-बसी हैं लेकिन ओछी राजनीति बीच में अड़चने पैदा करती हैं। साहस वह शक्ति है जो व्यक्ति को नवाचार करने, जोखिम उठाने और असाधारण कार्य करने की प्रेरणा देती है। वीरता का अर्थ केवल युद्ध के मैदान में लड़ना नहीं है बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए आवश्यक गुण है, यही हमारी भारतीय सेना का भी गुण है। “वीर भोग्य वसुंधरा “ सिद्धांत और हमारी भारतीय सेना हमें यह शिक्षा देती है कि साहस, एकता और वीरता के बिना समृद्धि और सफलता अधूरी है और आपकी जीत भी दूर है। इसलिए जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय सेना की तरह साहसी, कर्तव्यनिष्ठ और निडर बनें और फिर हर जगह जीत आपकी ही होगी। इसलिए सशस्त्र सेना झंडा दिवस या भारत का झंडा दिवस भारत के सशस्त्र बलों के सैनिकों और दिग्गजों को सम्मानित करने के लिए समर्पित एक दिन के साथ-साथ एक प्रेरणदायिक दिवस भी है । यह दिन 1949 से भारत में 7 दिसंबर को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। भारत को स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद, सरकार को अपने रक्षा कर्मियों के कल्याण का प्रबंधन करने की आवश्यकता महसूस हुई। 28 अगस्त 1949 को तत्कालीन रक्षा मंत्री के अधीन गठित एक समिति ने 7 दिसंबर को प्रतिवर्ष झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया । झंडा दिवस मनाने के पीछे का विचार आम जनता को छोटे झंडे वितरित करना और बदले में दान एकत्र करना था। झंडा दिवस का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि देश के लिए लड़ने वाले सशस्त्र बलों के कर्मियों के परिवारों और आश्रितों की देखभाल करना भारत की नागरिक आबादी की जिम्मेदारी है। आज देश के वीर जवानों के शौर्य, सतर्कता और समर्पण के कारण ही देश की सीमाएं एवं सभी देशवासी सुरक्षित हैं। हर भारतीय को हमारी सशस्त्र सेनाओं द्वारा युद्धकाल और आपदा के समय निभाए गए अतुलनीय कर्तव्यों और साहसिक योगदान को नहीं भूलना चाहिए। हमारे वीर जवानों की वीरता, अदम्य साहस, निष्ठा और अतुलनीय बलिदान से हमारा राष्ट्र भारत सदैव गौरवान्वित हुआ है और हमेशा रहेगा। यह भारत देश एवं हर भारतीय अपने देश के महान वीर सैनकों के प्रति सदैव ऋणी रहेंगे। सशस्त्र सेना झंडा दिवस के अवसर पर हर भारतीय नागरिक अपनी क्षमता के अनुसार सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में योगदान देकर वीर सैनिकों और उनके परिवारजनों के प्रति अपना आभार प्रकट करें।
जवाहरलाल नेहरू जो उस समय भारत के प्रधान मंत्री थे, उन्होंने 7 दिसंबर 1954 को कहा था: “कुछ सप्ताह पहले मैंने इंडो-चीन का दौरा किया और वहां अंतर्राष्ट्रीय आयोग से जुड़े हमारे अधिकारियों और लोगों से मुलाकात की। उनके स्मार्ट व्यवहार और उस दूर देश में उनके द्वारा किए जा रहे अच्छे काम को देखकर मैं रोमांचित हो गया। मुझे इससे भी अधिक खुशी इस बात से हुई कि वहां के लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता बहुत अधिक थी। अपनी कार्यकुशलता और मित्रता से उन्होंने भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया। उनमें भारत के सभी भागों से लोग थे। उन्होंने अपने बीच कोई प्रांतीय या अन्य मतभेद नहीं देखा। मुझे यकीन है कि मेरे देशवासियों को उनके बारे में जानकर खुशी होगी और वे इन युवाओं के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त करना चाहेंगे जो यहां और अन्य जगहों पर हमारे देश की इतनी अच्छी सेवा करते हैं। उस प्रशंसा को दर्शाने का एक तरीका झंडा दिवस कोष में योगदान देना है।“ भारतीय सशस्त्र बलों का ध्वज यूनाइटेड किंगडम के रक्षा मंत्रालय के ध्वज के समान है , जिसका पहली बार 1956 में उपयोग किया गया था और यह ब्रिटिश-संरेखित क्षेत्रों में एक सामान्य रंग योजना है, जिसका उपयोग साइप्रस , केन्या और नाइजीरिया सहित राष्ट्रमंडल देशों द्वारा किया जाता है । झंडा दिवस तीन बुनियादी उद्देश्यों को बढ़ावा देने का काम करता है: युद्ध में हताहतों का पुनर्वास, सेवारत कार्मिकों एवं उनके परिवारों का कल्याण, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों का पुनर्वास और कल्याण, सशस्त्र सेना झंडा दिवस स्मरणोत्सव और झंडों के वितरण के माध्यम से धन संग्रह। यह भारतीयों के लिए भारत के वर्तमान और अनुभवी सैन्य कर्मियों के प्रति आभार और प्रशंसा व्यक्त करने और देश की सेवा में शहीद हुए लोगों को स्वीकार करने का समय है। झंडा दिवस पर भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों शाखाएँ, भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने कर्मियों के प्रयासों को आम जनता के सामने प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न प्रकार के शो, कार्निवल, नाटक और अन्य मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित करती हैं। पूरे देश में तीनों सेवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले लाल, गहरे नीले और हल्के नीले रंग के छोटे झंडे और कार झंडे दान के बदले में वितरित किए जाते हैं। मूल झंडा दिवस निधि की स्थापना 1949 में रक्षा मंत्री की समिति द्वारा की गई थी। 1993 में भारत के रक्षा मंत्रालय ने संबंधित कल्याण निधि को एक सशस्त्र सेना झंडा दिवस निधि में समेकित कर दिया । उन निधियों में शामिल हैं: युद्ध शोक संतप्त, युद्ध विकलांग और अन्य पूर्व सैनिकों/सेवारत कार्मिकों के लिए एकीकृत विशेष निधि, झंडा दिवस निधि, सेंट डंस्टन (भारत) और केंद्रीय सैनिक बोर्ड फंड, भारतीय गोरखा पूर्व सैनिक कल्याण कोष। देश भर में निधि संग्रह का प्रबंधन केंद्रीय सैनिक बोर्ड (केएसबी) की स्थानीय शाखाओं द्वारा किया जाता है, जो रक्षा मंत्रालय का एक हिस्सा है । संग्रह का आयोजन स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों तरीकों से किया जाता है। हालांकि पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों का कल्याण केंद्र सरकार और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी है, लेकिन अधिकांश समस्याओं का समाधान राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ही करना होता है। केंद्र में केंद्रीय सैनिक बोर्ड की तरह राज्य/जिला सैनिक बोर्ड अपने-अपने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों/जिलों में रहने वाले पूर्व सैनिकों, विधवाओं और उनके आश्रितों के लिए पुनर्वास और कल्याण योजनाओं के नीति निर्माण और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं। इस संबंध में केंद्र सरकार की सहायता के लिए देश में 32 राज्य सैनिक बोर्ड और 392 जिला सैनिक बोर्ड हैं। सचिव केएसबी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में सैनिक कल्याण विभाग को भूतपूर्व सैनिकों, विधवाओं के पुनर्वास और कल्याण की नीतियों पर सलाह देते हैं और सैनिक कल्याण विभाग के निदेशक/सचिव आरएसबी और जिला सैनिक कल्याण अधिकारी/सचिव जेडएसबी से नीतियों के कार्यान्वयन और भूतपूर्व सैनिकों, विधवाओं, सेवा से अयोग्य घोषित किए गए विकलांग कर्मियों और उनके आश्रितों के पुनर्वास में सफलता पर रिपोर्ट मांगते हैं। ग्राहकों के लिए आवश्यक कल्याणकारी योजनाओं पर भी सलाह दी जाती है, जिन्हें राज्यों/संघ शासित प्रदेशों की सरकारों और समामेलित विशेष निधियों द्वारा आवंटित धन से वित्तपोषित किया जाता है। इस कोष का संचालन केंद्र में रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली एक प्रबंध समिति और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारों के कार्यकारी प्रमुखों द्वारा किया जाता है। जब सशस्त्र सेना झंडा दिवस कार्यक्रम शुरू किया गया था तो निधि आवंटन को इस तरह से प्रबंधित किया गया था कि केंद्रीय केएसबी मुख्यालय को प्रत्येक राज्य द्वारा किए गए झंडा दिवस निधि संग्रह का केवल एक बहुत छोटा हिस्सा दिया जाता है। केंद्रीय सैनिक बोर्ड (केएसबी) के लिए आवंटित धन राज्य में प्रति व्यक्ति केवल आधा पैसा है।