जसवां-परागपुर क्षेत्र में चीड़ की पत्तियों पर आधारित उद्योग लगने चाहिए। समाज सेवी संजय पराशर ने पीरसलूही में जनसवांद कार्यक्रम के तहत स्थानीय वासियों से रूबरू होते हुए कहा की वन विभाग को के पेड़ों के संरक्षण के लिए अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए। इस बार चीड़ के पेड़ों को बड़ा नुकसान हुआ है बावजूद इसके विभाग चीड़ के पेड़ों के पौधारोपण को तरजीह नहीं दे रहा है।
पराशर ने कहा कि रिड़ी कुठेड़ा से अलोह तक के क्षेत्र में चीड़ के पेड़ बहुत मात्रा में पाए जाते हैं। ऐसे में जसवां-परागपुर में चीड़ की पत्तियों पर आधारित उद्योग लगें तो इस पेड़ की सुरक्षा के साथ स्थानीय वासियों को रोजगार के अवसर भी मिल सकते हैं।
चीड़ की पत्तियों पर आधारित उद्योग लगाने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की घोषणा भी प्रदेश सरकार द्वारा की गई थी, लेकिन उद्यमियों ने इस क्षेत्र मे कोई रूचि नहीं दिखाई है।कहा कि चीड़ की पत्तियों और लैंटाना से बिक्रेट्स बनाए जा सकते हैं और निश्चित तौर पर इससे क्षेत्र में नौकरियों में भी इजाफा दर्ज होगा। लेकिन इसके लिए उद्योगपतियों के लिए सबसे पहले माहौल तैयार करना होगा और उन्हें कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो सके, इसके बारे में भी रोड़ मैप तैयार करना होगा।
संजय ने कहा कि जसवां-परागपुर क्षेत्र में चीड़ के पेड़ों का दायरा समय के साथ कम होता जा रहा है। इसके पीछे आग भी बड़ा कारण रहा है। लेकिन पौधरोपण की सफलता की दर बीते वर्षों में क्या रही है, इस पर भी मंथन होना चाहिए। पराशर ने कहा कि वन विभाग अब इस प्रजाति के पौधों को रोपने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। कहा कि जंगल में आग लगने पर सबसे ज्यादा चीड़ के पेड़ ही प्रभावित होते हैं, ऐसे में गर्मी के मौसम से ऐन पहले जंगलों में फायर लाइन्स वन विभाग को क्लीयर करनी चाहिए तो सर्दी के मौसम में वन्य क्षेत्र में कंट्रोल बर्निंग भी करनी चाहिए।
संजय पराशर ने कहा कि गर्मी का मौसम शुरू होते ही चीड़ की पत्तियां जंगलों में बिखर जाती है और आग लगने पर यह अत्यंत ज्वलनशील पत्तियां बारूद जैसा काम करती हैं। अगर गर्मी का मौसम सुरक्षित भी गुजर जाए तो बरसात के मौसम में इनके नीचे कोई वनस्पति नहीं उग पाती है। संजय ने कहा कि अगर क्षेत्र में चीड़ की इन सूखी पत्तियों पर आधारित उद्योग क्षेत्र में स्थापित हों तो न सिर्फ पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद बल्कि स्थानीय वासियों के लिए अतिरिक्त आय का साधन मिल सकता है।