Preneeta Sharma
Editor
मिलिए एक ऐसे शख्स से जो सुबह सुबह अपने परिवार के बक्सों को खोलकर देखता है । बॉक्सो में और कोई नहीं बल्कि मधुमखीयां थी जिनके साथ सोरु राम जी दिन रात रहते है।
सोरु राम,श्रीखंड कैलाश तले ब्यूनि गाँव में मधुमक्खी पालन का काम करते है। जैसे गद्दी लोगो का काम होता है वेसे ही इस मधुपालन का काम है। सोरु राम अभी मार्च से यहाँ है इसके बाद जैसे ठण्ड में मधुमखीयां पंजाब की तरफ रवाना होंगी सोरु राम भी उनके साथ अपने डब्बे लेकर निकल पड़ेगे।
मार्च से मधुमखियां सेब उत्पादकों की मदद करती है और जब पहाड़ो में बर्फ पड़ेगी और मैदानी इलाको में सरसो बीज दी जायेगी फिर सोरु राम अपनी मधुमक्खी पालन के बक्से लेकर पंजाब हरयाणा के गुरुग्राम तक पहुंचेंगे फिर मार्च में फिर वापिस लौटेंगे।
ऐसे कई काफिले पहाड़ से चढ़ाई उतराई करते रहते रहते हैं। सरसो वाला शहद मक्खियां नीचे मैदान के इलाकों में बनाती हैं तो वहीँ जंगली फूलों झाड़ियों वाला शहर पहाड़ पर। फूल और वनस्पति ही शहद की तासीर तय करते हैं। .
जब सोरु राम से पूछा की मधुमखीया आपको डंक नहीं मरती क्या, तो उन्होंने बताया की उनके कपड़ो में शहद की खुसबू है इसलिए उन्हें यह डंक नहीं मारती।
फोटो खींचने पर उन्होंने कहा बस सांस छत्ते की तरफ नहीं लेना होता मुंह दूसरी तरफ और नजर छत्ते की तरफ। सांस अगर इनके छत्ते तक पहुंची तो हमला हो सकता है। साथ ही बालों में तेल नहीं लगा होना चाहिए। तब भी हमले का खतरा हो सकता है।
सोरु राम का शहद जीतना मीठा है, जीवन उतना ही कठिन
सोरु राम ने crazynewsindia को बताया एक डब्ब्बे में एक ही रानी मक्खी होती है और वही अंडे देती है , बाकी मक्खियां शहद लाने की मजदूरी करती है परन्तु रानी डब्बे से बाहर नहीं निकलती। उन्होंने रानी मक्खी भी दिखाई जो देखने में अन्य मखियों से बिलकुल अलग थी।
केवल रानी मधुमक्खी में ही अंडे देने की क्षमता होती है जबकि मजदूर मधुमक्खियां नपुंसक होते हैं। यह फर्क केवल उनके लालन-पालन और भोजन अलग अलग होने से होता है ।
उन्होने बताया एक रानी मक्खी के द्वारा दिए गए निषेचत( नर के स्पर्म से मेल हुए) अंडों से रानी और मजदूर मधुमक्खियां,दोनों, उत्पन्न होती है ।परंतु उनमें से में से कौन सा अंडा रानी मक्खी बनेगी, और कौन मजदूर बनेंगे ,यह उन अंडों से निकलने वाले लारवा को खिलाए जाने वाले खाने पर निर्भर करता है
मधुमक्खी के छत्ते में तीन प्रकार की मधुमक्खियां होती है : श्रमिक मक्खी, ड्रोन मक्खी एवं रानी मक्खी | श्रमिक व रानी मक्खी मादा होती है | रानी मक्खी प्रजनन करती है एवं श्रमिक मक्खियों से आकर में बड़ी होती है | ड्रोन मक्खिया नर होते है जो डंकविहीन होते है
श्रमिक मधुमक्खियां परिचारकों की तरह रानी मक्खी के इर्द गिर्द घूमती है इसलिए एक छत्ते में रानी मक्खी को पहचानना मुश्किल नहीं है | यदि एक छत्ते में दूसरी बाहरी रानी मक्खी आ भी गयी तो श्रमिक मक्खिया घुसपैठ रानी मक्खी को छत्ते से बाहर करने की कोशिश करेगी या दोनों रानी मक्खिया तब तक लड़ाई करेगी जब तक कोई एक ही रानी बची।
खैर सोरु राम कभी किन्नौर भाभा वैली के कटगांव में टेलर का काम भी करते थे जो उन्होंने 22 वर्ष किया। बतौर सोरु राम जेंट्स टेलर का काम अब इतना ज्यादा नहीं रहा है तो सरकार की मधुमक्खी पालन सब्सिडी और योजना का लाभ वो उठा रहे है और यही अब उनका पेशा है।
सोरु राम जी सरसो सीजन में ठीक ठाक आउटपुट एक डब्बे से शहद के रूप में ले लेते है पहाड़ पर आउटपुट कम है शहद 300 -400 रूपए किलो बिक जाता है। घर से दूर सोरु राम यहीं बगल में एक घर में बरामदे में सोते है और दिनभर यहीं डब्बो के पास रहते हैं उनका खाना ऊपर गाँव से बस में घरवाले भेज देते हैं।