मनाली (सोनू): हिमाचल प्रदेश में चमोली व केदारनाथ जैसी प्राकृतिक आपदा के आने की संभावना बढ़ रही है। वहीं जिस गति से ग्लेशियरों का पिघलना जारी है, इससे इन आपदाओं को रोकने के लिए भी वैज्ञानिक शोध कार्य में व्यस्त हैं। हिमाचल प्रदेश कौंसिल फॉर साइंस, टैक्नोलॉजी एंड एन्वायरनमैंट की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश की 4 बेसिन नदियों सतलुज, चिनाब, रावी व ब्यास घाटियों में तकरीबन ऐसी 1600 झीलें हैं जो जलवायु परिवर्तन के कारण हिमाचल में कभी भी बड़ी आपदा को ला सकती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार लाहौल-स्पीति की चंद्रा वैली में करीब 65 ग्लेशियरों से 360 झीलें बनने जा रही हैं जो कभी भी चमोली व केदारनाथ जैसी आपदा को भविष्य में ला सकती हैं।
हिमाचल प्रदेश कौंसिल फॉर साइंस, टैक्रोलॉजी एंड एन्वायरनमैंट के डॉ. अंकुर पंडित ने बताया कि सिस्सू गांव के ऊपर घेपन झील में ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला निरंतर जारी है, जिससे झील का जल स्तर बढऩे से इस गांव को खतरा बन सकता है क्योंकि इस झील में ग्लेशियरों के टुकड़े पिघलकर आने से उसमें तैर रहे हैं, जिससे झील का जलस्तर बढ़ रहा है। स्थानीय पंचायत प्रधान सुमन ठाकुर का कहना है कि आज तक घेपन झील से निकलने वाले नालों से कोई बड़ा नुक्सान नहीं हुआ है लेकिन जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का समय चल रहा है उससे भविष्य में खतरा बढ़ सकता है।
वैज्ञानिकों की शोध से पता चला है कि पिछले 50 वर्षों में जलवायु परिर्वतन में 1 डिग्री सैल्सियस की बढ़ौतरी दर्ज की गई है, जिससे ग्लेशियरों के निरंतर पिघलने से छोटी-बड़ी झीलें बन रही हैं। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि लाहौल-स्पीति का बाराशिगली ग्लेशियर सबसे बढ़ा ग्लेशियर है। जलवायु परिवर्तन जिस तरह से उत्तराखंड में आपदा लेकर आया है। इससे हिमाचल प्रदेश में भी भविष्य में ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली झीलों का पता लगाना चुनौतीपूर्ण है। हिमाचल के सतलुज बेसिन में 769 झीलें, चिनाव बेसिन में 254 झीलें तथा रावी व ब्यास बेसिन को मिलाकर कुल 1600 झीलें हैं जो भविष्य में फ्लैश फ्लड की स्थिति को उजागर कर सकता है।
डीसी नीरज कुमार ने बताया कि लाहौल-स्पीति में ग्लेशियरों के निरंतर पिघलने से झीलों के बनने से आने वाली आपदा के लिए वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के शोध से जो सुझाव वह देंगे, उसके सदृश प्रदेश सरकार के दिशा-निर्देश के अनुरूप कार्य को अंजाम देंगे।