शिमला
बिजली बोर्ड का आर्थिक संकट टला नहीं है। बोर्ड को फरवरी के आखिरी दिन तक सरकार से मिलने वाली सबसिडी का भुगतान नहीं हुआ और इस वजह से बोर्ड ने अपने तमाम खर्च रोक दिए हैं। बोर्ड ने फरवरी महीने का पूरा राजस्व वेतन और पेंशन पर लगा दिया है। बोर्ड ने करीब 190 करोड़ रुपए के फंड से अन्य खर्च रोक कर इससे वेतन और पेंशन का भुगतान किया है।
बोर्ड के पास राजस्व का मुख्य साधन 125 यूनिट से अधिक बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं की अदायगी ही है और इस राजस्व को बोर्ड बिजली खरीद, फील्ड की डिमांड और कर्मचारियों के भत्ते पर खर्च करता है, लेकिन इस बार इन तमाम खरीद को रोककर बोर्ड ने करीब 190 करोड़ रुपए 16 हजार कर्मचारी और 29 हजार पेंशनरों पर खर्च किए हैं। इसके अलावा आउटसोर्स कर्मचारियों को भुगतान किया गया है। अब मार्च में राज्य सरकार की ओर से 200 करोड़ रुपए की सबसिडी की अदायगी होती है, तो बोर्ड लंबित खर्चों का भुगतान करने की स्थिति में होगा।
गौरतलब है कि प्रदेश में 125 यूनिट बिजली मुफ्त करने के एवज में राज्य सरकार को सबसिडी का भुगतान करना पड़ता है। अभी तक 200 करोड़ रुपए सबसिडी का भुगतान लंबित है। हाल ही में राज्य सरकार को 1300 करोड़ रुपए का ऋण मंजूर हुआ है और इसके बाद संभावना जताई जा रही थी कि बोर्ड को इस राशि से 200 करोड़ रुपए मिल जाएंगे, लेकिन राज्य सरकार ने सबसिडी की अदायगी पर फरवरी के आखिरी सप्ताह तक कोई फैसला नहीं किया। ऐसे में पहली मार्च को वेतन और पेंशन की अदायगी बोर्ड को अपने हिस्से से ही करनी पड़ी है। फिलहाल, अब बोर्ड राज्य सरकार से आने वाली सबसिडी का इंतजार कर रहा है, ताकि मार्च महीने के खर्च पूरे किए जा सकें। राज्य सरकार ने मुफ्त बिजली के दायरे को 300 यूनिट तक ले जाने की गारंटी दी है, लेकिन बोर्ड की मौजूदा वित्तीय हालत को देखते हुए बोर्ड प्रबंधन और कर्मचारी यूनियन दोनों ने ही सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया है।
बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक पंकज डढवाल ने बताया कि सबसिडी पर सरकार से वार्तालाप चल रहा है। मार्च के पहले हफ्ते में सबसिडी का भुगतान होने की संभावना है। बिजली बोर्ड ने वेतन और पेंशन का भुगतान फरवरी में जुटाए गए राजस्व से किया है। सबसिडी से अन्य खर्च पूरे होंगे।