कुल्लू
देवभूमि में सदियों से देव परंपराओं का आज भी बखूबी निर्वहन किया जा रहा है । सैंज घाटी के बनोगी में देवता पुंडरिक ऋषि के सम्मान में धान की रोपाई की गई। ढोल-नगाड़ों की थाप पर देवता के समक्ष यह परंपरा निभाई गई। ढोल नगाड़ो की थाप पर देवता के समक्ष यह परंपरा निभाई गई। बागा सराहन से इस कारज के लिए विशेष तौर पर बनोगी आए थे। सैकड़ों लोग इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने।
देवता पुंडरिक ऋषि के सम्मान में धान की रोपाई
पुडरिंक ऋषि के गुर किशोरी लाल ठाकुर ने कहा पुरानी परम्परा का सदियों से निर्वहन हो रहा है। इसे खुना रूहणी के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस धान की रूपाई के लिए चार गांव से 20 से 22 बैल की जोड़ी और 300 से अधिक महिलाएं धान की रूपाई के लिए आती थी। 500 बीघा में धान की खेती होती थी। लेकिन अब इन रोपे में सेब के बगीचे लगाए गए। पुडरिंक ऋषि के कारदार लोतम राम ने कहा कि देवता ने इन चीजों को कायम रखने को कहा है।
देवता ने हारियानों संग धान रोपाई के खेतों में देव नृत्य किया। कोरोना के बीच यह रस्म सूक्ष्म स्तर पर निभाई गई। देवता पुंडरिक ऋषि के गुर किशोरी लाल ठाकुर ने कहा कि इस पुरानी देव परंपरा का निर्वहन सदियों से होता आ रहा है। देव परंपरा को खुना रूहणी के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस धान की रोपाई के लिए चार गांव से 20 से 22 बैल की जोड़ी और 300 से अधिक महिलाएं आती थी।
कुल 500 बीघा भूमि में धान की खेती होती थी लेकिन अब धान के खेतों में लोगों ने सेब के बगीचे लगा दिए गए हैं। जिसके चलते अब धान की रोपाई कम जगह पर होती है। हालांकि परंपराओं का निर्वहन बखूबी हो रहा है। देवता पुंडरिक ऋषि के कारदार लोतम राम ने कहा कि देवता ने गूर के माध्यम से स्थानीय लोगों को इन पुरानी देव परंपराओं को भविष्य में भी कायम रखने को कहा है। महिलाओं ने देवता के समक्ष धान की रोपाई की। ऐसे देव कार्यों से गांव के लोगों में भाईचारा भी बना रहता है।