बिलासपुर, 6फरवरी
सुभाष चंदेल
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सदस्य, पूर्व मंत्री व विधायक श्री नयना देवी जी विधानसभा क्षेत्र राम लाल ठाकुर ने कहा कि देश में किसान आंदोलन बेशक ख़त्म हो गया लेकिन किसानों की आय अभी भी जस की तस बनी हुई है।
देश मे चल रहे पांच राज्यो के परिणामों से भयभीत भाजपा की सरकार ने हार के डर से किसानों के आगे झुकी है लेकिन देश के किसानों की हालत सुधारने के लिए अभी भी कोई कारगर समाधान नही किए गए हैं।
अभी भी किसानों की मासिक आय में अभी तक कोई ज्यादा वृद्धि नहीं हो पाई है। उन्होंने केंद्र सरकार के द्वारा प्रकाशित आंकड़ो का विश्लेषण करके यह बात प्रदेश की जनता के सामने रखी है। उन्होनें कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा इन किसानों के समुदाय वादी आकड़ो से पता चलता है कि यदि किसानों की वार्षिक मासिक आय सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यह है तो वास्तविकता क्या होगी इस बात का पता भी लगाया जाना चाहिए। उन्होंने भाजपा की सरकारों को यह भी याद दिलाया कि यूपीए की सरकार के समय जब प्रतिव्यक्ति आय पर आर्थिक सर्वे होता था तब भाजपा के नेता देश मे बड़ा बबाल मचाते थकते नहीं थे लेकिन वर्तमान में किसानों के प्रति परिवार आय में के जो आंकड़े आये हैं वह बड़े चौकाने वाले हैं। उन्होंने बताया कि ग्रामीण भारत में कृषि परिवारों और उनकी स्थिति के आकलन को लेकर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण के जरिए इस महीने की शुरुआत में जारी किए आंकड़ों से पता चलता है कि अनुमानित 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में 44.4 फीसद ओबीसी, 21.6% अनुसूचित जाति (एससी), 12.3% अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 21.7 फीसदी अन्य समूहों से हैं। वहीं कुल ग्रामीण परिवारों में से 9.3 करोड़ या 54% कृषि परिवार हैं। देश के 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 44.4 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं। ये ज्यादातर आबादी सात बड़े राज्यों तमिलनाडु, बिहार, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, केरल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ से हैं। राज्यवार बात करें तो ग्रामीण क्षेत्र में ओबीसी परिवारों का उच्चतम अनुपात तमिलनाडु (67.7%) में है और सबसे कम नगालैंड (0.2%) में है। तमिलनाडु के अलावा बाकी के छह राज्यों में स्थिति कुछ इस प्रकार है- बिहार (58.1%), तेलंगाना (57.4%), उत्तर प्रदेश (56.3%), केरल (55.2%), कर्नाटक (51.6%), छत्तीसगढ़ (51.4%)। ओबीसी की इस आबादी के साथ इन राज्यों की राजनीतिक भागीदारी भी काफी दमदार है। क्योंकि 543 सदस्यीय लोकसभा में यहां से 235 सदस्य चुने जाते हैं। इसके अलावा, 44.4% के राष्ट्रीय आंकड़े की तुलना में चार राज्यों –राजस्थान (46.8%), आंध्र प्रदेश (45.8%), गुजरात (45.4%) और सिक्किम (45%) में ग्रामीण ओबीसी परिवारों की हिस्सेदारी अधिक है। कुल मिलाकर, राष्ट्रीय औसत की तुलना में अन्य 17 राज्यों – मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, हरियाणा, असम, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड ग्रामीण ओबीसी परिवारों की संख्या कम है। सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि अनुमानित 9.3 करोड़ कृषि परिवारों में से 45.8% ओबीसी हैं। इसके अलावा 15.9% अनुसूचित जाति, 14.2% अनुसूचित जनजाति और 24.1% अन्य समूहों से हैं। #devbhumimirror
इसके अलावा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वेक्षण में प्रति किसान परिवार की औसत मासिक आय का जो डेटा भी जारी किया है उसके अनुसार आंकड़ों के कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान एक किसान परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रुपये थी, जबकि ओबीसी कृषि परिवारों (9,977 रुपये), अनुसूचित जाति परिवारों (8,142 रुपये), एसटी परिवारों (8,979 रुपये) के हिसाब से कम थी। हालांकि, ‘अन्य सामाजिक समूहों’के कृषि परिवारों ने औसत मासिक आय 12,806 रुपये दर्ज़ की। राज्यों के हिसाब से ओबीसी श्रेणी में प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान 5,009 रुपये और 22,384 रुपये के बीच थी। जो कि प्रति किसान परिवार बहुत कम है और अभी वर्तमान में 23000 रुपये से आगे नही बढ़ पाई है। देश मे चल रही सरकारों को इस विषय पर सोचना चाहिए कि देश मे किसान परिवारों की मासिक आय किस तरह से बढ़ाई जाए ताकि किसानों की आय दुगनी हो सके।