शिमला,20मार्च
देवता भी फाग मनाते हैं, वो भी सामान्य जनों के साथ। रंगों के साथ नहीं, मन की उमंगों के साथ। यह अगर देखना और महसूस करना है तो आपको रामपुर बुशहर का फाग माला देखना होगा। शिमला से 120 कि.मी. की दूरी पर है रामपुर बुशहर। लगभग 6,500 फुट की उंचाई के ऊपर बसे शिमला शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलकर आधे रास्ते पर 9,000 फुट की ऊंचाई पर पड़ता है नारकंडा। फिर वहां से आधे रास्ते उतरना ही उतरना है और हम पहुंच जाते हैं, सतलुज के बायें किनारे पर बसे रियासत कालीन नगर रामपुर बुशहर, जो 3,500 फुट की ऊंचाई पर बसा है। बुशहर रियासत के एक राजा राम सिंह नें इस शहर को बसाया था और फिर सराहन से राजधानी को स्थानांतरित कर रामपुर ले आया गया। यह गर्म स्थान है जबकि पहाड़ी पर बसा सराहन ठंडा स्थान है।
रियासत काल से परम्परा रही है कि होली के दूसरे दिन, आसपास के क्षेत्रों के देवता राजा को आशीर्वाद देने राजा की प्रौड़ (डयोढ़ी) तक आते हैं। राज परिवार के सदस्य उनका स्वागत करते हैं। देवताओं के साथ सैंकड़ों देवलू वाद्य यंत्रों की धुनों पर नाचते गाते दरबार मैदान में प्रवेश करते हैं। तब रामपुर नगर से गुजरता राजमार्ग दावलुओं और श्रद्धालुओं से पूरी तरह पटा रहता है। अधिकांश देवता, जिनके रथ को नंगे पांव उठा कर पैदल लाना होता है, होली के दिन ही पूरी सजधज के साथ निकल पड़ते हैं। मार्ग में उनके पड़ाव निश्चित रहते हैं। पूरे रास्ते स्वागत में लोग उमड़े रहते हैं।
पिछले दो वर्षों में करोना के कारण यह फाग मेला नहीं हो पाया था। लोग भी निराश रहे। इस वर्ष लोग इतने उल्लास में रहे कि पिछले दो वर्षों की कसर निकाल दी। इस वर्ष खड़ाहण के देवता जिशर नें भी मेले में शिरकत की। होली की रात उनका पड़ाव नोगड़ी में रहता है। होली के अगले दिन हम भी देवता जिशर के पीछे-पीछे रामपुर पहुंच गए। भारी भीड़। यातायात सम्भालने में पुलिस का प्रयास सराहनीय है। भीड़ में ज़रूर घंटों फसे रहे, पर देवताओं और उनके साथ नाचते गाते झूमते दावलुओं और श्रद्धालुओं की मस्ती देखकर सभी आनन्दित होते रहे। न किसी को कोई गिला न शिकवा। सभी को पता रहता है कि भीड़ में फसेंगे ही फसेंगे। इसलिए सब लोग तैयार ही रहते थे। दिन में खूब गर्मी थी। मोबाइल 24° तापमान बता रहा था।
दरबार मैदान में तो धूम ही अलग थी। अपने देवता के गिर्द लोगों नें खूब नाटी लगा रखी थी। लोग झूमें जा रहे थे। उनकी मस्ती देखकर मौसम भी अंगड़ाई लेने से खुद को नहीं रोक पाया। देवता संग श्रद्धालुओं को नाचते देख वहां लगे पेड़ भी झूम उठे। अमृत बरसाने हल्की सी बूंदाबांदी हुई, हवा नें रफतार पकड़ ली। नाटी देखें या फिर लम्बे सघन हरे पेड़ों की झूम! आसमान की तरफ देखें तो वही दिखते। मैदान में देखें तो दर्जनों नाटियां। देवताओं की तो यही फाग है। अबीर-गुलाल से नहीं, गाल मस्ती से लाल हैं।
इस वर्ष यह फाग मेला 19-21 मार्च तक मनाया जा रहा है। अगले दिन देवगण निज धाम को प्रस्थान कर देंगे।