चम्बा में मिंजर मेले के आयोजन को लेकर जिला प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। चौगान के आसपास लंबे समय से बंद पड़ी लाइटों को ठीक करने का कार्य शुरू कर दिया गया है। आगामी दिनों में चौगान में बने मंच में भी रंग-रोगन का कार्य किया जाएगा। इस बार मिंजर मेला 28 जुलाई से 4 अगस्त तक मनाया जाएगा। मिंजर मेले के दौरान अस्थायी तौर पर व्यापारिक गतिविधि शुरू करने के लिए भी नीलामी प्रक्रिया को पूरा किया जा रहा है। इस बार मेले के दौरान शहर के अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को जगमगाती लाइटों से सजाने के लिए भी कार्य किया जाएगा ताकि रात के अंधेरे में शहर की सुंदरता को बढ़ाया जा सके।
राजा के विजयी होने पर भेंट की थी गेहूं, मक्का और धान की मिंजर
लोककथाओं के अनुसार मिंजर मेले की शुरूआत 935 ई. में हुई थी। जब चम्बा के राजा त्रिगर्त के राजा जिसका नाम अब कांगड़ा है, पर विजय प्राप्त कर वापस लौटे थे तो स्थानीय लोगों ने उन्हें गेहूं, मक्का और धान के मिंजर और ऋतुफल भेंट करके खुशियां मनाई थीं। स्थानीय लोग मक्की और धान की बालियों को मिंजर कहते हैं। इस मेले का आरंभ रघुवीर जी और लक्ष्मीनारायण भगवान को धान और मक्की से बना मिंजर या मंजरी और लाल कपड़े पर गोटा जड़े मिंजर के साथ, एक रुपया, नारियल और ऋतुफल भेंट किए जाते हैं। इस मिंजर को एक सप्ताह बाद रावी नदी में प्रवाहित किया जाता है। मक्की की कौंपलों से प्रेरित चम्बा के इस ऐतिहासिक उत्सव में मुस्लिम समुदाय के लोग कौंपलों की तर्ज पर रेशम के धागे और मोतियों से पिरोई गई मिंजर तैयार करते हैं, जिसे सर्वप्रथम लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ मंदिर में चढ़ाया जाता है और इसी परंपरा के साथ मिंजर महोत्सव की शुरूआत भी होती है।