माता लक्ष्मी ने पहली बार राजा बलि को बांधी थी राखी
शिमला 30 अगस्त ं। भ्रदाकाल होने के चलते रक्षा बंधन का त्यौहार क्योंथल क्षेत्र में फीका रहा । भद्राकाल होने से बहनों में पहली बार रक्षा बंधन के प्रति उत्साह कम देखा गया । 30 अगस्त की रात को 9 बजे के उपरांत शुभ मुहुर्त होने के चलते अधिकांश बहने सांय को ही अपने भाई के घर पहूंची । अन्यथा बसों में इस त्यौहार के दिन महिलाओं की काफी भीड़ लगी रहती थी। जिसके लिए सरकार ने महिलाओं को रक्षा बंधन को एचआरटीसी की बसों में निःशुल्क यात्रा की व्यवस्था काफी वर्षो ंसे चल रही है ।
वरिष्ठ नागरिक सूरत सिह चैहान, प्रीतम ठाकुर से जब इस बारे बात की गई तो बताया कि उनके जीवन के अनुभवों के अनुसार रक्षा बंधन के त्यौहार को कभी भी पूरे दिन भद्रा नहीं देखी गई है । ऐसा यह पहली बार देखने को मिला है। ूदूसरी बात कि अतीत में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कभी राखी बांधने की परंपरा नहीं थी । रक्षा बंधन को प्रातः पुरोहित घर आकर मौली की राखी बांधते थे जिसके एवज में उन्हें अनाज इत्यादि दक्षिणा दी जाती थी । बहनों द्वारा भाई को राखी बांधने तथा करवाचैथ का व्रत का प्रचलन 80 के दशक में शुरू हुआ था ।
आखिर भद्रा है क्या है । अनेक ज्योतिषाचार्य एवं कर्मकांड के ज्ञाता विद्वान पंडितों का कहना कि भ्रदा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनिदेव की बहन है । राजा शनि की भांति भद्रा का स्वभाव कड़क माना जाता है । भद्राकाल के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं । जबकि भ्रदाकाल में तंत्र साधना, अदालती और राजनैतिक कार्यों के लिए शुभ मानी जाती है । ऐसी मान्यता है कि रावण को उनकी बहन ने भद्राकाल में राखी थी जिससे रावण अल्पायु हो गए थे ।
सबसे पहले राखी किसने बांधी थी ।
पुराणों के अनुसार सतियुग में माता लक्ष्मी ने पहली बार महादानी राजा बलि को बांधी थी । कथानुसार राजा बलि एक महादानी व्यक्ति माने जाते थे । भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा लेने वामन रूप धारण करके राजा बलि से तीन पग भूमि दान मांगी थी । जिस पर राजा ने हामी भरी । वामन भगवान ने दो पग में सारी पृथ्वी नाप ली । जब तीसरा पग की बारी आई तो राजा बलि ने अपना सिर कर दिया और साथ में भगवान से वर मांगा कि विष्णु भगवान भी उनके साथ पाताल में वास करेगें । माता लक्ष्मी को जब इस बारे मालुम हुआ तब उन्होने बुढ़िया का रूप धारण करके भाद्रमाह की पूूर्णिमा को राजा बलि को पाताल में राखी बांधी थी और विष्णु भगवान को वापिस छोड़ने की गुहार लगाई थी । इस के बावजूद भी राजा बलि ने विष्णु भगवान को वर्ष के चार माह तक पालात में शयन करने का आग्रह किया था । तभी से हर वर्ष आषाढ़ मास को देवश्यनी एकादशी को भगवान पाताल चले जाते हैं और कार्तिक माह की प्रबोधनी एकादशी को निद्रा से जागते हैं । इसी प्रकार द्रोपदी द्वारा भगवान कृष्ण को राखी का उल्लेख पुराणों में मिलता है ।