हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्त्व है और इस बार चार दिसंबर को शनिवार के दिन अमावस्या का विशेष संयोग बन रहा है जिसे शनिचरी अमावस्या भी कहा जाता है। ज्योतिषी शोधार्थी व एस्ट्रोलॉजी एक विज्ञान रिसर्च पुस्तक के लेखक गुरमीत बेदी के अनुसार शनिवार को अमावस्या का संयोग कम ही बनता है। शनिचरी अमावस्या का प्रारंभ तीन दिसंबर को शाम 04:56 बजे से होगा और शनिचरी अमावस्या की समाप्ति चार दिसंबर को दोपहर 01:13 बजे होगी। इस तरह शनिचरी अमावस्या चार दिसंबर को मनाई जाएगी। इस दिन संयोग से सूर्य ग्रहण भी है इसलिए इस अमावस्या का महत्त्व और बढ़ गया है। गुरमीत बेदी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार शनि, सूर्य के पुत्र हैं।
परंतु, दोनों एक-दूसरे विरोधी ग्रह भी हैं। इसलिए शनि अमावस्या को सूर्य ग्रहण के समय ब्राह्मणों को पांच वस्तुओं का पंच दान सर्वाधिक लाभदायक होता है। ये पांच वस्तुएं अनाज, काला तिल, छाता, उड़द की दाल, सरसों का तेल होती हैं। इन पांचों वस्तुओं के दान का महत्त्व होता है। इनके दान से परिवार की समृद्धि में वृद्धि होती है व शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। पंच दान से विपत्ति से रक्षा और पितरों की मुक्ति होती है। गुरमीत बेदी ने यह भी बताया कि जिन जातकों पर शनि की साढ़े-साती या ढैया चल रही है, वे शनि अमावस्या पर अवश्य दान करें। अमावस्या को धर्म ग्रंथों में पर्व भी कहा गया है। यह वह रात होती है जब चंद्रमा पूर्ण रूप से नहीं दिखाई देता है। दिन के अनुसार पडऩे वाली अमावस्या के अलग-अलग नाम होते हैं। जैसे सोमवार को पडऩे वाले अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं । उसी तरह शनिवार को पडऩे वाली अमावस्या को शनि अमावस्या या शनिचरी अमावस्या भी कहते हैं।
ये करें उपाय
शनिचरी अमावस्या पर पानी में गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल के साथ तिल मिलाकर नहाना चाहिए। ऐसा करने से कई तरह के दोष दूर होते हैं। शनिचरी अमावस्या पर पानी में काले तेल डालकर नहाने से शनि दोष दूर होता है। इस दिन काले कपड़े में काले तिल रखकर दान देने से साढ़ेसाती और ढैय्या से परेशान लोगों को राहत मिल सकती है। साथ ही एक लोटे में पानी और दूध के साथ सफेद तिल मिलाकर पीपल पर चढ़ाने से पितृदोष का असर भी कम होने लगता है।