अपनी अपनी डफली अपना अपना राग अलाप रही हिमाचल सरकार
कोरोना महामारी से आज जहां प्रदेश के हर वर्ग के लोग सभी अपनी दो वक्त की रोजी-रोटी के संघर्षरत हैं, वहीं लाखों लोग अभी भी रोजगार की तलाश में भटक रहें है।
लॉकडाउन के कारण व्यवसायिक गतिविधियों सहित रोजगार के साधनों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से गहरा प्रभाव पड़ा है। ऐसे में आमजन की आर्थिकी का संतुलन बिगड़ चुका है। जहां आमजन अपने परिवार की रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं बच्चों की स्कूल फीस को लेकर भी उनमें असमंजस का माहौल है।
घरों में बैठे हुए व्हाट्सएप की पढ़ाई के लिए स्कूल फीस चुकाने के लिए लोगों को मजबूर किया जा रहा है,जबकि शिक्षा मंत्री के बयान कुछ ओर ही हैं।हालांकि इस संकट के समय मे स्कूल फीस में रियायत मिलनी चाहिए, क्योंकि सैंकड़ों ऐसे अभिभावक ऐसे है जो निजी सेक्टर में कार्यरत है और उनको अभी तक सैलरी भी नही मिली है। प्रदेश सरकार ने इनकम टैक्स भरने वाले परिवारों को राशन की सब्सिडी खत्म करने का निर्णय लेकर मध्यम वर्ग को परेशान करने का काम किया है।
वहीं अब परिवहन मंत्री ने कहा है कि बसों को शुरू किया जाएगा और डेढ़ गुणा किराया की बढ़ोतरी करके। मध्यम वर्ग पर सरकार का एक और जनविरोधी निर्णय से आमजन में भी रोष में है। सरकार आमजन की सुनने की बजाए निजी स्कूलों व बसों का ख्याल रख रही है।
सरकार के मंत्रियों की बात करें तो खुद सरकार के मंत्रियों को 10 लाख की गाड़ी पसंद नहीं आ रही है उसके बदले इनको 35 लाख की फॉर्च्यूनर गाड़ी चाहिए। इस कुंभकर्णीय सरकार के ये सारे फैंसलें जनहित में हैं? क्या इस से आम लोगों की स्तिथी सुधरेगी?
20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज अभी तक जनता तक अभी पहुंचा भी नहीं है और उसकी वसूली का काम शुरू भी कर दिया है।
क्या इस लॉक डाउन में मिडीओकार परिवारों की गलती थी? जो उन पर सरकार महंगाई का बोज डाल रही है। क्या करेगा मिडीओकार परिवार कहा से पालेगा अपना घर…. एक बड़ा सवाल?