राजेंद्र राणा ने मुख्यमंत्री से चार सवाल पूछ कर मांगा जवाब
सुजनपुर,27 मई:
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा दिल्ली से लौटने के बाद दी गई प्रेस वार्ता पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सुजानपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने सरकार की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए एक के बाद एक तीखे सवालों के जरिए मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा कर दिया है। राणा ने कहा कि यह प्रेस वार्ता न सिर्फ तथ्यों से परे थी, बल्कि इससे साफ झलकता है कि मुख्यमंत्री जल्दबाजी में बात कर रहे थे और संवैधानिक मर्यादाओं की अनदेखी कर रहे थे।
राजेंद्र राणा ने सबसे पहले चीफ इंजीनियर विमल नेगी मामले में मुख्यमंत्री के उस बयान पर सवाल उठाया जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार सीबीआई जांच के आदेश के खिलाफ अपील नहीं करेगी। राणा ने पूछा कि यदि ऐसा है तो फिर शिमला के एसपी संजीव गांधी किसके निर्देश पर हाई कोर्ट में अपील की बात कर रहे थे और सीबीआई को रिकॉर्ड देने से इनकार कर रहे थे? क्या उन्हें सरकार ने इसके लिए अधिकृत किया था? यदि नहीं, तो यह सर्विस कंडक्ट रूल का खुला उल्लंघन है और मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या इस अनुशासनहीनता पर कोई कार्रवाई की जाएगी।
राणा ने आगे कहा कि यह अत्यंत असामान्य और गंभीर बात है कि एक एसपी रैंक का अधिकारी मीडिया में आकर अपने ही वरिष्ठ अधिकारियों – डीजीपी, गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, और यहां तक कि मुख्य सचिव के खिलाफ खुलेआम बयानबाज़ी कर रहा है। यह न केवल सरकारी सेवा के नियमों का उल्लंघन है बल्कि शासन व्यवस्था में अनुशासनहीनता की खुली छूट देने जैसा है। मुख्यमंत्री बार-बार “व्यवस्था परिवर्तन” की बात करते हैं, तो क्या यही उनका नया प्रशासनिक मॉडल है जिसमें अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर सार्वजनिक रूप से अपने उच्चाधिकारियों के खिलाफ बोलें?
राजेंद्र राणा ने मुख्यमंत्री सुक्खू के विधानसभा में दिए गए उस बयान को भी कठघरे में खड़ा किया जिसमें उन्होंने कहा था कि विमल नेगी के परिवार ने एसआईटी जांच पर संतोष जताया है। जबकि वास्तविकता यह है कि नेगी परिवार ने हाई कोर्ट में शपथपत्र देकर स्पष्ट किया कि वे इस जांच से असंतुष्ट हैं और उन्हें सीबीआई जांच का कोई आश्वासन सरकार से नहीं मिला। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री का यह बयान सदन में असत्य नहीं था? यदि हां, तो क्या वे इसके लिए सदन और जनता से माफी मांगेंगे?
इसी क्रम में राजेंद्र राणा ने मुख्यमंत्री द्वारा हाई कोर्ट की उस टिप्पणी पर सवाल उठाने को भी गंभीर चिंता का विषय बताया जिसमें अदालत ने स्पष्ट किया था कि सीबीआई टीम में हिमाचल कैडर का कोई अधिकारी नहीं होना चाहिए ताकि जांच निष्पक्ष हो सके। राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे संवैधानिक रूप से हाई कोर्ट से ऊपर नहीं हैं और इस तरह की न्यायिक टिप्पणी पर सार्वजनिक बयानबाज़ी करना न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आता है। उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री इस पर भी सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगें।
राजेंद्र राणा ने मुख्यमंत्री से यह भी पूछा है कि क्या आप इस बात से सहमत हैं कि कोई अधिकारी मीडिया में जाकर पांच बार के विधायक सुधीर शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता पर बिना किसी सबूत के टिप्पणी कर सकता है? यदि नहीं, तो वे स्पष्ट करें कि क्या ऐसे अधिकारी पर कोई कार्रवाई होगी?
पूर्व विधायक ने दो टूक कहा कि यह सिर्फ एक अधिकारी की मौत का मामला नहीं है, बल्कि यह पूरे शासनतंत्र की पारदर्शिता और संवैधानिक आचरण की कसौटी है। हिमाचल की जनता सब देख रही है और अब सरकार की गंभीरता को भी परख रही है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को अपना दायित्व निभाना चाहिए, न कि अनुशासनहीन अधिकारियों को संरक्षण देकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करना चाहिए।
राजेंद्र राणा ने कहा कि यह मामला अब महज़ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का नहीं रहा, बल्कि शासन की साख, संवैधानिक मर्यादा और न्याय की पारदर्शिता का प्रश्न बन गया है।