बारिश की फुहारों में पर्यटक स्थल कूफरी, सिलोनबाग, कोटी जनेडघाट में सैलानी भुटटे का लुत्फ उठा रहे हैं । सड़क के किनारे मक्की भून रहे गरीब लोगों की भुट्टे बेचकर पर्यटकों से अच्छी कमाई हो रही है । सैलानी भुट्टे देखकर सैलानियों के मुंह में पानी आ जाता है और गाड़ी रोककर भुट्टे खरीद रहे हैं । सिलोनबाग में मक्की भून महिला ने बताया कि पर्यटक काफी मात्रा में भुट्टे खरीद रहे हैं और हरोज कच्चे भुट्टे की एक बोरी लग रही है ।
बता दें कि भुट्टे जहां स्वाद व पौष्टिकता से भरपूर है वहीं पर भुट्टे में विटामिन व खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में मक्की का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता हैं। बता दें कि अतीत से ही ग्रामीण क्षेत्रों में मक्की का काफी मात्रा में उत्पादन किया जाता रहा है । किसानों का नकदी फसलों के प्रति रूझान बढ़ने से मक्की उत्पादन में कमी आई है । ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची मक्की का उपयोग भुट्टे के अलावा सत्तू व पचौले बनाने के लिए भी किया जाता है । किसानों द्वारा कच्ची मक्की को उबाल कर इसके सत्तू बनाए बनाए जाते हैं जिसका उपयोग विशेषकर गर्मियों के दौरान किया जाता है । इसके अतिरिक्त कच्ची मक्की को पीस कर पचौले बनाए जाते हैं ।
क्षेत्र के प्रगतिशील किसान प्रीतम ठाकुंर, देशराज, राकेश कुमार का कहना है कि सर्दियों के दिनों में मक्की की रोटी का उपयोग पहाड़ों में हर घर में किया जाता है क्योंकि मक्की की रोटी की ताहसीर भी गर्म होती है । चूल्हे में लकड़ी की आग से तैयार मक्की की रोटी का स्वाद ही निराला होता है। सरसों का साग अथवा अरबी की सब्जी के साथ मक्की की रोटी के खाने का मजा ही कुछ अलग है ।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का में फाईबर काफी मात्रा में उपलब्ध होता है जिसके उपयोग से शरीर में कॉलेस्ट्रॉल स्तर को सामान्य बनने के अतिरिक्त हृदय संबधी रोगों से भी बचाव रहता है । मक्का के दैनिक जीवन में उपयोग से मनुष्य के शरीर में आयरन की कमी भी पूरी होती है । कृषि विकास अधिकारी डॉ0 अर्जुन ने बताया कि शिमला जिला में करीब 6708 हैक्टेयर भूमि पर मक्की का उत्पादन किया जाता है जिसमें औसतन दस हजार मिट्रिक टन उत्पादन होता है । इस वर्ष विभाग द्वारा 168 क्ंिवटल मक्की का बीज किसानों को उपदान पर उपलब्ध करवाया गया ।