चंडीगढ़ 12 नवंबर आरके विक्रमा शर्मा
आज स्थानीय गौरीशंकर सेवादल गौशाला सेक्टर 45 चंडीगढ़ में मां तुलसी एवं भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में विवाह बड़े धूमधाम से हर्षोल्लास से मनाया। जिसमें हजारों ही भक्तजन समस्त परिवार सहित इस भगवान नारायण एवं मां तुलसी की शुभ विवाह में साक्षात सभी लोग उपस्थित रहे। और सब भक्तजनों ने विशाल भंडारा का प्रसाद ग्रहण किया। इस शुभ अवसर पर गौरीशंकर सेवादल के सदस्य सुमित शर्मा व विनोद कुमार एवं मनोहर लाल सैनी, भुवनेश महाजन, सुरेंद्र गोपाल इत्यादि ने स्थानीय सीनियर जर्नलिस्ट आरके विक्रमा शर्मा को बताया कि गौरीशंकर सेवा दल में सुबह से ही शुभ लग्न अनुसार विवाह का भव्य रूप प्रातः स्वागत किया गया। और भजन कीर्तन इत्यादि मंत्र मुग्ध होकर सभी ने भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया। हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में कहा गया है कि एक बार दैत्य जालंधर ने देवताओं को बार-बार युद्ध के लिए अग्रेषित करते हुए ललकारा। और वहीं, भगवान विष्णु को भी युद्ध के लिए ललकार करने लगा। जब भगवान विष्णु स्वयं दैत्य राज के साथ युद्ध करने लगे। तो काफी संघर्ष से भगवान के सभी प्रयासों के बाद भी जालंधर परास्त नहीं हुआ। अपनी इस विफलता को देखते हुए श्री हरि ने विचार किया कि यह दैत्य जालंधर आखिर मर क्यों नहीं जा रहा है। तब पता चला कि दैत्य राज की रूपवती पत्नी वृंदा का ही जप तप एवं एकादशी के व्रत का फल सही से ही जालंधर की मृत्यु में अवरोध बन रहा है। जब तक उनके जप तप बल का छाया रहेगा। तब तक राक्षस को परास्त नहीं किया जा सकता। इस कारण भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया। जालंधर का रूप धारण किए भगवान विष्णु ने छल से तप और तपस्या की प्रतिमूर्ति वृंदा की तपस्या के साथ ही उसके शील सत को भी भंग कर दिया। और भगवान विष्णु ने इस कार्य में छल कपट दोनों का प्रयोग किया। इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर युद्ध में विजय प्राप्त किया। पर जब वृंदा को भगवान के छल कपट पूर्वक अपने तप सतीत्व को समाप्त करने का पता चला। तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुई। और श्री हरि को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओगे। तब भगवान विष्णु ने यहां श्राप को स्वीकार किया। और श्री हरि के मन में वृंदा के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया। तब उन्होंने वृंदा से कहा कि हे वृंदा! तुम वृक्ष बनकर मुझे अवश्य प्राप्त करोगी। श्राप से, वृंदा तुलसी रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई। वहीं भगवान शालिग्राम बने। और इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी शालिग्राम का परिणय भाव हुआ। देवउठनी से 6 महीने तक देवताओं का दिन प्रारंभ हो जाता है। तथा तुलसी का भगवान श्री हरि विष्णु शालिग्राम स्वरूप में प्रतीकात्मक विवाह जो भी करता है। उसे बैकुंठ के समस्त सुख ऐश्वर्य एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। और जो भक्त जन श्री नारायण के इस विवाह में सम्मिलित होते हैं। वह अवश्य अवश्यमेघ कोटि फल की प्राप्ति पाते हैं। आज मंत्र उच्चारण के बीच में तुलसी शालिग्राम जी का शुभ विवाह सपन्न हुआ़। भगवान के इस शुभ विवाह में लोग बार और बधू पक्ष में बताकर नृत्य भजन गायन मंत्र उच्चारण करते हुए अपने जीवन को धन्य करते रहे यही सनातनी पौराणिक ऐतिहासिक पुरातन धर्म संस्कृति प्रचलित है। जिसका आजभी सनातनी हिंदू अक्षरत पालन करते हैं।