कैप्टन संजय ने कहा है कि व्यवस्था परिवर्तन से ही जसवां-परागपुर क्षेत्र का समग्र विकास हो सकता है। शुक्रवार को गरली पंचायत में 22वें महायज्ञ के आयोजन के अवसर पर पराशर ने कहा कि धरोहर गांव गरली का स्मृद्ध इतिहास और गौरवमयी संस्कृति का गवाह रहा है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि जिस जगह पर इस गांव को आज होना चाहिए था, वहां तक नहीं पहुंच पाया है। पराशर ने कहा कि गरली का इतिहास एक हजार वर्ष से पुराना बताया जाता है और स्थानीय वासियों के विजन और सोच के चलते पराधीन भारत में भी इस क्षेत्र ने विकास के नए आयाम स्थापित कर लिए थे और स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की थीं। बावजूद अब विडम्बना यह है कि आजादी के 75 वर्ष बाद यहां सुविधाओं की दरकार है।
संजय ने कहा कि गरली आसपास की कई पंचायतों का केंद्र बिंदु भी है, ऐसे यहां सुपर स्पेशलिटी अस्पताल का निर्माण होना समय की मांग है। गरली में कॉलेज की मांग स्थानीय वासियों द्वारा सत्तर के दशक से की जा रही है, लेकिन हर बार इस जायज मांग को अनदेखा किया जाता रहा है।
पराशर ने कहा कि गरली वासियों ने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है, लेकिन अब युवा प्रतिभाओं को प्लेटफार्म न मिलने से बाहर नौकरी के लिए जाना पड़ता है। इस कारण इस क्षेत्र से पलायन भी हुआ है, जोकि क्षेत्र व क्षेत्रवासियों के कदापि भी अच्छी बात नहीं है। संजय ने कहा कि इस गांव में आईटी पार्क या कॉल सेंटर बनाए जा सकते हैं ताकि स्थानीय स्तर पर भी युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें। कहा कि गरली देश का पहला धरोहर गांव है और यहां से जुड़ी ऐसी दिलचस्प कई बातें व किस्से हैं, जोकि अब भी पर्यटकों की नजरों से अनभिज्ञ हैं।
धरोहर गांव की प्रसिद्धी के लिए व्यापक स्तर पर प्रचार व प्रसार होना चाहिए। पराशर ने कहा कि जसवां-परागपुर क्षेत्र में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, नारी सशक्तीकरण व गरीबी उन्मूलन जैसे कई प्रमुख मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर सार्वजनिक तौर पर चर्चा होनी चाहिए। बेरोजगारी क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा है।
हालांकि इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने भी व्यक्तिगत तौर पर प्रयास किए हैं, लेकिन इस दिशा में तंत्र काे भी अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करना चाहिए। संजय ने कहा कि गरली में मूलभूत सुविधाओं में इजाफा हो और स्थानीय स्तर पर कारोबार बढ़े, इसके लिए भी उन्होंने महायज्ञ का आयोजन करके भगवान से प्रार्थना की है।