शीत मरुस्थल के रूप में पहचाने जाते हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहुल-स्पीति की स्पीति घाटी की ढलानों में प्राकृतिक तौर पर उगने वाला हर्बल पौधा कोचे (एलियम कैरोलिनियम) लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके फूल प्याज और पत्तियां मसाले का काम करती हैं। सॢदयों के सात माह स्पीति घाटी के लोगों को कोचे प्याज व मसाले की कमी महसूस नहीं होने देता है। कोचे 3000 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर सूर्य की ढलान के साथ बढ़ता है। यह प्याज की ही एक प्रजाति है। जुलाई व अगस्त में इसके पौधे पर 25 मिलीमीटर अंडे के आकार के फूल लगते हैं। जब अपना पूरा आकार लेते हैं तो लोग पत्तियां व फूल निकाल कर सूखा लेते हैं।
फूल व पत्तियों के भंडारण का काम लोग जुलाई के अंत में शुरू कर देते हैं। स्पीति घाटी की आबादी करीब 18000 है। बर्फबारी के कारण सॢदयों में घाटी देश से सात माह के लिए पूरी तरह कट जाती है। सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। बाहर से आवश्यक वस्तुओं की आपूॢत नहीं होती है। गॢमयों के दौरान भंडारण किए गए खाद्यान से काम चलाया जाता है। प्याज का लंबे समय तक भंडारण संभव नहीं है। ऐसे में यहां के लोग कोचे को वर्षों से प्याज व मसाले के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं। दाल व सब्जी को तड़का लगाने के लिए सुखाए गए फूलों को घी व तेल में प्याज की तरह डालकर भुना जाता है। प्याज व मसाले की कमी पूरी करने के साथ यह बेरोजगारों की जेब भरने का काम भी करता है।
औषधीय गुणों से भरपूर
यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। कई बीमारियों के उपचार में इसके फूल व पत्तियां काम आती हैं। कोचे के फूल व पत्तियां मांसपेशियों में ऐंठन कम करने व कृमिनाशक के रूप में भी प्रयोग की जाती हैैं।
एलियम कैरोलिनियम (कोचे) प्राकृतिक तौर पर स्पीति की नमीदार ढलानों में पैदा होता है। इसके फूल व पत्तियों को सूखा कर लोग प्याज व मसाले के रूप में इस्तेमाल करते हैं। -सुजाता नेगी, ब्लॉक तकनीकी प्रबंधक, स्पीति।