हिमाचल के मशहूर पर्यटन स्थल कुफरी में घोड़ों की अनियंत्रित आवाजाही से पर्यावरण और वनस्पति को नुकसान हो रहा है। इस बात की पुष्टि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट में हुई है। इस रिपोर्ट के आधार पर NGT ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, हिमाचल सरकार, स्पेशल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (SADA) और कुफरी पंचायत को नोटिस जारी किया है।
NGT ने इन स्टेक-होल्डर से एक महीने के भीतर जवाब मांगा है। नोटिस का जवाब मिलने के बाद NGT फाइनल ऑर्डर सुनाएगा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 जुलाई को तय की गई है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कुफरी में 1087 मीटर के थोड़े से क्षेत्र में 1029 घोड़े पंजीकृत हैं। इनके कारण पर्यावरण और देवदार के पौधों की जड़ों को भी नुकसान हो रहा है। इससे जंगल में नए पौधे नहीं पनप पा रहे।
कुफरी, दिसंबर से फरवरी के बीच अच्छी बर्फबारी के लिए मशहूर था, लेकिन बीते कुछ सालों से यहां दिसंबर से फरवरी के बीच बर्फ नहीं गिर रही और क्षेत्र में पानी के स्त्रोत सूख रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि रिजर्व फॉरेस्ट में घोड़ों की मूवमेंट के अलावा अस्थायी दुकानें, वाहनों के लिए पार्किंग, घोड़ों के लिए रुकने के स्थान और अन्य संबंधित गतिविधियां भी चल रही है, जबकि रिजर्व फॉरेस्ट में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।
NGT ने दिल्ली के एडवोकेट शेलेंद्र कुमार यादव की एक याचिका पर संज्ञान लिया। NGT की जस्टिस सुधीर अग्रवाल और ज्यूडिशियल मेंबर डॉ. ए. सेंथिल वेल विशेषज्ञ सदस्य की बेंच ने मार्च महीने में एक जॉइंट कमेटी गठित करने के निर्देश दिए थे और कुफरी की फील्ड रिपोर्ट मांगी थी। अब कमेटी की रिपोर्ट पर NGT ने स्टेक-होल्डर को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
याचिकाकर्ता की दलील है कि घोड़ों के कारण कुफरी में देवदार के पेड़ों की जड़ों को नुकसान, पानी के स्त्रोत दूषित, इनकी लीद से चारो ओर गंदगी फैल रही है। चायल-कुफरी सड़क पर भी घोड़ों के मालिकों ने JCB मशीन लगाकर क्षतिग्रस्त किया है। इससे क्षेत्र में फॉरेस्ट और इकोलॉजिकल संतुलन बिगड़ा रहा है।
NGT ने DFO (डिवीज़नल फॉरेस्ट ऑफिसर) शिमला, रीजनल ऑफिसर मिनिस्टर एन्वायर्नमेंट फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज चंडीगढ़ और स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड तथा डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट शिमला की जॉइंट कमेटी बनाई थी। कमेटी ने कुफरी साइट का विजिट करने के बाद अपनी रिपोर्ट NGT को दी। हिमाचल प्रदेश स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (HPSPCB) को इसके लिए नोडल एजेंसी बनाया गया था।