हिमाचल प्रदेश के छह बार के सीएम रहे वीरभद्र सिंह मंगलवार को अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं। 23 जून 1934 को वीरभद्र सिंह का जन्म हुआ था। कोरोना महामारी को देख ते हुए आज उन्होंने अपने चाहने वालो को उनके निवास होल्ली लॉज में आने से मना किया है । पर क्या उनके फैन वहां नहीं आएंगे, यह तो आज ही पता चलेगा।
बता दे हर साल लाखों की संख्या में उनके फैन ओर चाहने वाले उनके जन्मदिन पर उनसे मिलने और बधाई देने के लिए आते है। हर साल होली लॉज में सुबह से बड़ी भीड़ उनको बधाई देने के लिए जमा होजाती है। इस बार कोरोना माहमारी के चलते क्या होगा यह तो आज ही पता चलेगा। पर बता दे वीरभद्र सिंह अपने जीवन में एक ऐसी शख्सियत रही है जिन्होने हर वर्ग को खुशियाँ दी है।
हिमाचल की राजनीति में भी वीरभद्र सिंह का नाम अग्रिम पंक्ति में लिया गया है। सूबे की सियासत की बात हो और वीरभद्र का नाम न आया, ऐसा संभव ही नहीं है।
लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान वीरभद्र सिंह ने एक बड़ा खुलासा किया था। उन्होंने कहा कि वह कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस नेताओं के कहने पर वह राजनीति में आए। 15 मई 2019 को शिमला के संजौली में जनसभा में वीरभद्र सिंह ने कहा कि उनका सपना था कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में प्रोफेसर बनें। लेकिन, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने राजनीति में आने को कहा और इस तरह उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। गौरतलब है कि वीरभद्र सिंह 25 साल की उम्र में सांसद बने थे।
दिल्ली से की पढ़ाई थी
वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून 1934 को हुआ। वीरभद्र सिंह का जन्म शिमला जिले के सराहन में हुआ। उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह था। उनकी पढ़ाई पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल (बीसीएस) शिमला से ही हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की। वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक करियर में केवल एक ही बार चुनाव हारे हैं। देश में शिशु के बाद 1977 में जब कांग्रेस का देश से सफाया हो गया था, उसी दौरान वीरभद्र सिंह भी चुनाव हारे थे। वीरभद्र सिंह का संबंध राजघराने से है। वह गिहार रियासत के राजा रहे हैं।
केंद्रीय राजनीति में वीरभद्र का सफर
सिंह ने पहली बार सन 1962 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। इसके बाद 1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें जीत मिली। 1980 में सीएम वीरभद्र सिंह ने फिर चुनावी ताल ठोकी और सांसद को चुना। उन्हें इस दौरान राज्य के उद्योग मंत्री का प्रभार मिला था। इसके बाद वीरभद्र सिंह ने प्रदेश की राजनीति की ओर रुख किया। हालांकि 2009 में वह एक बार फिर मंडी संसदीय सीट से सांसद चुने गए। इससे पहले, जब 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी, तो इसी सीट से उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह सांसद खजुरिया थीं।
केंद्र में दो बार मंत्री रहे
1976 और 1977 के बीच, वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में पर्यटन और नागरिक उड्डयन के लिए उपमंत्री का राष्ट्रीय कार्यालय भी संभाला था। उन्होंने 1980 से 1983 के बीच उद्योग मंत्री रहे। मई 2009 से जनवरी 2011 तक केंद्रीय केंद्रीय मंत्री का जिम्मा सौंप दिया गया। बाद में जून 2012 में उन्हें माइक्रो, स्माल और मीडियम इंटर्नशिप की जिम्मेदारी सौंपी गई। शाल 1976 में वीरभद्र सिंह यूनाइटेड नेशन्स की जनरल असेंबली के लिए भारतीय डेलीगेशन के सदस्य भी रहे।
प्रदेश राजनीति में वीरभद्र सिंह के मुकाम
केंद्रीय राजनीति में अहम भूमिका अदा करने वाले वीरभद्र सिंह ने 1983 में प्रदेश की राजनीति में सक्रियता बढ़ाई। सन 1983 में वह जुब्बल कोटखाई सीट से उपचुनाव जीता। इसके बाद सन 1985 के विधानसभा चुनावों में वीरभद्र सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से 1990, 1993, 1998 और 2003 में विधानसभा चुनाव जीता। सन 1998 से 2003 तक वह नेता विपक्ष भी रहे। इससे पहले, 1977, 1979 और 1980 में वह प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भी रहे।
1983 में पहली बार सीएम बने
वीरभद्र सिंह अप्रैल 1983 में पहली बार सीएम बने और 1990 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे। इसके बाद 1993 और 1998 और 2003 में वह फिर से सीएम की कुर्सी पर काबिज़ हुए। 2012 में वे छठी बार हिमाचल के सीएम चुने गए। हिमाचल की राजनीति और प्रदेश के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वीरभद्र सिंह 85 साल के हो गए हैं।
एक बेटा और चार बेटियां
बता दें कि नवंबर 1985 में वीरभद्र सिंह ने प्रतिभा सिंह से शादी की। उनका एक बेटा और चार बेटे हैं। हिमाचल की राजनीति और कांग्रेस को इस राज्य में दिखावटी करने में सीएम वीरभद्र सिंह का अहम योगदान रहा है। वर्ष 2015 में उन पर आय से अधिक संपत्ति बनाने के आरोप लगाए गए और सीबीआई ने उन पर केस दर्ज किया। इस मामले में उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को भी आरोपी बनाया गया है। वर्तमान में, मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
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