फल पौधों को लगाने का समय:
शीतोष्ण फल पौधों को लगाने का आजकल उपयुक्त समय है। इस वर्ष लम्बे सूखे की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए वर्षा होने के पश्चात ही पौधारोपण का कार्य करें। यह फल पौधे मार्च के महीने तक रोपित किये जा सकते हैं लेकिन जनवरी के महीने में इन फल पौधों का रोपण उपयुक्त रहेगा। टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी और अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में साधारणतया फल पौधों को कन्टूर विधि द्वारा लगायें। जिन बागावानों के पास छोटे-छोटे खेत बने हो या बनाये जा सके, इन खेतों के मध्य में उचित दूरी पर फल पौधों को लगाएं। खेतों की ढलान अन्दर की ओर रखें जिससे वर्षा के पानी का सही उपयोग हो सके और भूमि कटाव भी कम हो। निचले क्षेत्रों तथा समतल घाटियों में वर्गाकार या फिर षटभुजाकार विधि से पौधे लगाने की रूपरेखा बनायें। सघन बागवानी के लिए फल पौधे वहीं लगाएं जहां भूमि अधिक उपजाऊ, समतल तथा अधिक उत्पादन क्षमता वाली हो, सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो और तेज हवा भी न चलती हो। पौधों को एक दूसरे से अनुमोदित दूरी पर लगाना जरूरी है। यह दूरी फल की किस्म, मूलवृंत की किस्म, मिट्टी, जलवायु तथा काट-छांट की विधियों पर निर्भर करेगी। स्वनिष्फलता वाली किस्मों के साथ 25 से 33 प्रतिशत परागण क़िस्मों को अवशय लगाएं। जिसके लिए विषेशज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
जड़ों के विकास के लिए यह आवशयक है कि उन्हें फैलने के लिए जरूरी स्थान और आहार मिले। इसलिए नियत स्थान पर एक घन मीटर (1x1x1 मी.) का गड्ढा बनाएं। गड्ढे की मिट्टी को 10-12 दिन तक खुला रहने दें ताकि धूप लग सके। इससे हानिकारक जीवाणु तथा कीड़े नष्ट हो जाते हैं। पौधा लगाने से लगभग 15-20 दिन पहले गड्ढा मिट्टी से भरें और 20-30 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद तथा आधा किलोग्राम सुपर फास्फेट भी डालें। इसके उपरांत पानी डालें ताकि मिट्टी ठीक ढंग से बैठ जाये।
फल पौधों को लगाते समय जड़ों को उनकी सही दिशा में फैला देना चाहिए। पौधों को पौधशाला की भांति ही स्वाभाविक गहराई तक दबा कर रोपित करें। मौसम की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए फल पौधों को लगाने के पश्चात् इनकी सिंचाई अवश्य करें और इसमें मल्च का उपयोग करें, जिससे की नमी को ज्यादा समय तक संजोकर रखा जा सके। कॉलर रॉट बीमारी से बचाव के लिए पौधे में कलम के जोड़ को भूमि के धरातल से लगभग 20-25 सै.मी. ऊँचा रखें। इसी प्रकार नाशीकीटों जैसे सैंजोस्केल तथा वूली एफिड से बचाव के लिए पौधों को तेल (हॉर्टिकल्चर मिनरल ऑइल) के घोल या कीटनाशी घोल में डुबोएं या इनका छिड़काव करें।
प्राकृतिक खेती के तहत परामर्श
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत बागीचों में नमी बनाए रखने व खरपतवार को रोकने के लिए पौधों के तौलिए व वापसा में सूखी घास या अंतर फसल के अवशेषों से साल में 3-4 बार आच्छादन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। पौधों के आसपास पानी व हवा का अनुपात व हवा का प्रभाव सही रखने के लिए पौधों से 3-5 फीट की दूरी पर चार इंच गहरी नाली बनानी चाहिए। वर्ष में चार बार पौधे के मुख्य तने को धूप से बचाने व मृदा जनित बीमारियों से रोकथाम के लिए लेप का इस्तेमाल करना चाहिए। मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जीवामृत का पौधों पर छिड़काव व वापसा की सिंचाई (21 दिनों के अंतराल पर) व घन जीवामृत को वर्ष में 2-3 बार मिट्टी में 6.4 किलोग्राम प्रति बीघा के हिसाब से मिलना चाहिए।