कुल्लू
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने वन विभाग, हिमाचल प्रदेश के सौजन्य से 10 सितम्बर, 2023 को केलांग, लाहुल स्पीति में वन विभाग के अग्रिम पंक्ति के कर्मियों ने लिए सतत विकास और आजीविका के लिए वानिकी प्रौद्योगिकी पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया । अनिकेत शर्मा, डीएफओ लाहुल ने संस्थान से आग्रह किया कि संस्थान, वन विभाग के कर्मचारियों को जूनिपर के अलावा भोजपोत्र और बिलो की बीज कलेक्शन तकनीक एवं उसकी नर्सरी के बारे में ट्रेनिंग दे ।
लाहुल वन विभाग की नर्सरीयां अलग-अलग भौगोलिक स्थान पर हैं, अतः उनके अनुरूप जूनिपर उगाने की उचित तकनीक बताने का भी आग्रह किया । उन्होंने लाहुल में अरबोरेटम स्थापित करने की आवश्यकता बताई और कहा कि हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान इसमें वन विभाग को तकनीकी सहायता दे । उन्होंने बिलो मोर्टालिटी के बारे में भी चिंता जाहिर की ।डॉ संदीप शर्मा, निदेशक ने बताया कि संस्थान द्वारा भी सैलिक्स में पिछले दो दशकों से मोर्टालिटी देखी जा रही है, इसके विभिन्न कारण हैं । संस्थान इस प्रजाति की डिजीज प्रतिरोधक नई प्रजातियां विकसित करने पर काम कर रहा है और आशा जताई कि आने वाले समय में यह नई प्रजातियां विकसित होगी । डॉ . शर्मा ने बताया कि उनका संस्थान वन मंडल लाहुल में अरबोरेटम स्थापित एवं विकसित करने के लिए वन विभाग को पूर्ण तकनीकी सहयोग करेगा । उन्होंने ट्रान्स हिमालय की जूनिपर एवं अन्य पौधे एवं झाडियों का अरबोरेटम स्थापित करने का सुझाव दिया । डॉ. शर्मा ने उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक नर्सरी और वृक्षारोपण तकनीक विषय पर जानकारी साझा की । उन्होंने बताया कि पौधरोपण की सफलता के लिए सही और स्वस्थ पौध का चयन और पौधरोपण तकनीक बहुत महत्वपूर्ण होती है । डॉ. पीताम्बर सिंह, वैज्ञानिक ने जूनिपेरस पॉलीकार्पस (शुक्पा) एवं भोजपत्र की नर्सरी और पौधारोपण तकनीक पर प्रस्तुति दी और शीत मरुस्थल के महत्वपूर्ण वृक्ष शुक्पा का महत्व बताया । उन्होंने कहा कि जूनिपेरस पॉलीकार्पस मूल रूप से हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के आंतरिक शुष्क एवं शीत मरुस्थल क्षेत्र में पाया जाता है। हिमाचल प्रदेश मे इसके वन 210 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है । शुक्पा शीत मरुस्थल की पारिस्थितिकी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । इन क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों द्वारा विभिन्न धार्मिक संस्कारों को करने के लिए शुक्पा की पत्तियों का मंदिरों और मठों में धूप के रूप में उपयोग किया जाता है । उन्होंने बताया कि इसकी नर्सरी तकनीक उपलब्ध नहीं थी, उनके संस्थान ने इस पर शोध किया और इसकी पहली बार नर्सरी विकसित कर हजारों पौधे विकसित किए और हितधारकों को बांटें गए । प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से हिमाचल प्रदेश एवं लद्दाख वन विभाग के अग्रिम पंक्ति के कर्मियों और किसानो को शुक्पा की नर्सरी तकनीक सिखाई गई है । इसके अलावा उन्होनें भोजपत्र की बीज और वर्धन तकनीक के बारे में भी बताया । डॉ. जगदीश सिंह, वैज्ञानिक ने ‘विविधीकरण और सतत आय सृजन के लिए महत्वपूर्ण शीतोष्ण औषधीय पौधों की खेती’ विषय पर व्याख्यान दिया । उन्होनें बताया कि किसान औषधीय पौधों को बागबानी फसलों के मध्य उगाकर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में लाहुल स्पीति जिला के 25 प्रतिभागियों ने भाग लिया । डॉ. जोगिंद्र चौहान ने छरमा, फ्रैक्सीनस (थुंब) का शीत मरुस्थल में पारिस्थितिकी के महत्व के बारे में जानकारी दी । इसके अलावा उन्होंने भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए चलाए जा रहे मिशन लाइफ के बारे में अवगत करवाया और कर्मचारियों को लोगों के मध्य जागरूकता लाने का सुझाव दिया ।
वन विभाग के कर्मचारियों ने नर्सरी उगाने में आ रही विभिन्न दिक्कतों के बारे में वैज्ञानिकों को अवगत करवाया । जिसमें देवदार और कायल के बीज न उगने की दिक्कत बताई । इस पर डॉ. संदीप शर्मा ने बताया कि इसके लिए जरूरी है कि स्वस्थ और ताजा एकत्रित किए बीज दिसंबर माह में बीजे जाए । फफूंद से बचाने के लिए नर्सरी में फफूंदनाशक से मिट्टी को उपचारित करे । क्योंकि संक्रमित बीज नहीं उगते।