एक अनोखी मिसाल : बिलासपुर की इस महिला की, इतनी उम्र होने के वाबजूद भी अपना कार्य स्वयं करती है।
ठौकरी के नाम से जानी जाती इस महिला की भी अनोखी कहानी है। इस महिला ने अपने परिश्रम से बिलासपुर के इस गुरुद्वारा का निर्माण किया है। बता दे ठौकरी आज भी गुरुद्वारा के कलगीधर में रहती है। ठौकरी गुरुद्वारे में लगभग 1966 से रह रही है।
गुरुद्वारा मार्केट तो पहले थी ही नहीं। यह तो उस ग्रंथी और ठौकरी ने अपने सिरों पर पत्थर ढो़ढो़ कर इसको बनाया है ।कुछ साल पहले इसी गुरुद्वारे में एक ग्रंथी ऐसा भी आया जिसने इस ठौकरी की सुविधाओं पर पाबंदी लगा दी थी। पहले यह गाएं भी पालती थी ।अब बड़ी उम्र हो जाने के कारण नहीं पालती है ।तब इसको गउऐं पालने पर मनाही कर दी थी। इसकी कमरे की बिजली तक काट दी गई। मामला एसजीपीसी के चीफ तक पहुंचा था। यहां एसजीपीसी के बड़े-बड़े जत्थेदार आए और उनसे गुरुद्वारा मार्केट के दुकानदार महेंद्र चोपड़ा ,डॉक्टर जयप्रकाश शर्मा, कमल किशोर शर्मा ,शंकर तथा कई अन्य मिले थे। तब इसकी सारी सुविधाएं बहाल हुईं। और तब कहा गया था कि जब तक यह माई जीती है। तब तक इसको यहां से बेदखल नहीं किया जाए ।
आज ठौकरी जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गई है। सुनाई कम देता है ।उम्र बड़ी हो गई है। लेकिन फिर भी अपना काम खुद करती है। अपनी रोटी खुद बनाती है ।साफ-सफाई झाड़ू करती हुई और वाहे गुरु ,वाहे गुरु का जाप करके जीवन व्यतीत करती है।ऐसी महान सख़सियत को नमन।जो जीवन जीना सिखाती है।