शिमला
पहाड़ी क्षेत्रों में सेब की खेती के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश में इस साल खराब मौसम ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण सेब की फसल को भारी नुकसान हुआ है। अप्रैल-मई के महीने में जहां बगीचों में फूल आने लगते थे, वहीं इस दौरान हुई बारिश और ओलावृष्टि ने फूलों को नष्ट कर दिया है। जिसके कारण आगामी सेब सीजन में उत्पादन में भारी कमी की आशंका जताई जा रही है। इससे न केवल बागबान, बल्कि मंडियों को संचालित करने वाले आढ़ती, सेब की आवागमन से जुड़े ट्रांसपोर्टर से लेकर निज़ी सी. ए. स्टोर ऑपरेटर्स तक सभी चिंतित हैं। जबकि फ़िलहाल 800 से 1000 रुपये प्रति बॉक्स का नुकसान झेल रहे सेब बागबानों को इस सीजन अच्छा मुनाफा कमाने से अधिक चिंता पिछले साल के नुकसान और कर्ज की भरपाई की सता रही है।
कुछ निचले क्षेत्रों में जहां फल लगना शुरू हो गए थे, वहां भी ओलावृष्टि के कारण ज्यादातर फल झड़ गए हैं।हालांकि ऊंचाई वाले सेब बहुल इलाकों में अभी कुछ उम्मीद बरकरार है। लेकिन मौसम गर्म न हुआ तो सेब फसलों के प्रभावित होने की पूरी संभावना है। क्योंकि इस बार बगीचों में अब तक तापमान में गर्मी न होने के कारण पौधों में केवल पत्तियां ही नजर आ रही हैं। इस समय परागण प्रक्रिया आरंभ होती है तो तापमान 18 से 27 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहना चाहिए। इससे कम होने पर पौधों में फल बनने की संभावना क्षीण हो जाती है।फिलहाल आधा मई का महीना गुजर गया है, और इस समय तक सेब के पौधों में फल दिखना शुरू हो जाते थे, लेकिन फिलहाल निचले व ऊपरी दोनों इलाकों के कई बागानों में फलों का नामोनिशान नहीं है। यह किसानों के लिए बड़ी परेशानी का विषय है। कम उत्पादन का मतलब है कम मुनाफा और, कम मुनाफा ऐसे बागबानों के लिए सबसे अधिक मुश्किल खड़ी करने वाला है, जो खासकर सेब उत्पादन पर ही निर्भर हैं।
रामपुर, जुब्बल-कोटखाई व रोहडू क्षेत्रों में ओलावृष्टि से सेब की फसल को तो नुकसान हुआ ही है, साथ ही सेब के पौधों को भी भारी क्षति पहुंची है। इससे बागवानों की अच्छी फसल की उम्मीद भी टूट गई है। इसे देखते हुए कई बागबानों ने सरकार व प्रशासन से ओलावृष्टि से हुए नुकसान का आकलन कर उचित मुआवजा दिए जाने की मांग की है। कम फसल होने से सेब की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। इसका असर व्यापारियों पर भी पड़ेगा। उन्हें कम माल मिलेगा और जो माल मिलेगा उसकी कीमत भी ज्यादा होगी। इस स्थिति से किसानों और व्यापारियों दोनों को नुकसान होगा।
मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों के लिए भी ख़राब मौसम का अनुमान लगाया है, और मैदानी व मध्यपर्वतीय इलाकों में आसमानी बिजली कड़कने व आधी चलने की आशंका जताई है, जबकि इस दौरान उच्चपर्वतीय इलाकों में लाहौल-स्पीति, किन्नौर, कुल्लू और चम्बा में बर्फ़बारी की सम्भावना जताई है। आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में करीब 10 लाख परिवार खेती से जुड़े हैं, जिनमें 2 लाख परिवार सेब की खेती करते हैं। सेब की खेती न केवल इन परिवारों के भरण पोषण बल्कि राज्य के जीडीपी में भी 13 फासदी से अधिक का योगदान देती है। अब लगातार ख़राब बने हुए मौसम के कारण, पिछले साल की तरह इस साल भी सेब का उत्पादन बेहद कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले साल महज 1.80 करोड़ पेटियां ही मंडी में पहुंची थीं।
ध्यान देने वाली बात है कि वर्ष 2010 में रिकार्ड 5 करोड़ पेटी से ज्यादा सेब उत्पादन हुआ था, जबकि बीते 15 साल में केवल 5 बार ही 3 करोड़ पेटी सेब की पैदावार हुई है। अब मौजूदा हालात में बागबानों और सेब खरीदी करने वाली निजी कंपनियों, दोनों को सरकार से बेहतर कार्रवाई की उम्मीद है, ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके।