शिमला 20 दिसंबर । महिलाओं में मासिक धर्म आना एक नेचुरल प्रक्रिया है । जिस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ व्यवहार किया जाता है वह तर्कसंगत नहीं है । यह बात सिविल अस्पताल जुन्गा के प्रभारी चिकित्सक डाॅ0 मनोज कुमार ने स्वास्थ्य विभाग द्वारा जुन्गा में आयोजित जागरूकता शिविर के दौरान दी । उन्होने कहा कि अतीत में महिलाओं को मासिक धर्म आने पर घर में प्रवेश करना वर्जित होता था और उन्हें गौशालाओं में रहने को मजबूर होना पड़ता था । इन भ्रातिंयों बारे लोगों को जागरूक होने की आवश्यकता है ।
डाॅ0 मनोज ने बताया कि हमारे धार्मिक शास्त्रों में नारी को देवी की संज्ञा दी गई है । धार्मिक वेदों के अनुसार मासिक धर्म के दौरान तीन दिन तक महिला को आराम करने की सलाह दी गई है क्योंकि मासिक धर्म आने पर महिलाओं में काफी रक्त स्त्राव होता है अर्थात तीन दिन में करीब 500 एमएल रक्त स्त्राव होता है जिससे महिलाओं के शरीर में कमजोरी आती है इस उददेश्य से वेदों में मासिक धर्म आने पर आराम करने की सलाह दी गई थी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विशेषकर ग्रामीण परिवेश में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर पर खाना बनाने और किसी वस्तु को स्पर्श करने की अनुमति नहीं होती है । यह नियम करीब 4 दिन तक लागू रहते हैं । इस दौरान महिलाओं को अलग कमरे में सोना पड़ता है ।
उन्होने कार्यालय में आए लोगों से आग्रह किया कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ अस्पृश्यता जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए अपितु मासिक धर्म आने से महिला अशुद्ध नहीं होती है । यह एक नेचुरल प्रक्रिया है जिसके तहत 10 वर्ष के उपरांत किसी भी किशोरी को मासिक धर्म आ सकते हैं । इस दोरान स्वच्छता बनाए रखना बहुत जरूरी है । बेटियों को इस बारे जानकारी देने के लिए शिक्षण संस्थानों में विभाग द्वारा विशेष शिविर लगाए जाते हैं । उन्होने बताया कि महिलाओं के शरीर में हार्मोन में होने वाले बदलाव की वजह से गर्भाश्य से रक्त का स्त्राव होता है ।