अजय बनयाल
सांझा उत्सव 2025 जोकि शिमला के रिज मैदान के साथ पदम देव कॉम्प्लेक्स में हो रहा है। इसमें मोमो के पापा भी खाने को मिल रहे है। कल मैंने भी टेस्ट की तो बेहतरीन स्वाद था। सिर्फ अभी तक मोमो के पापा को बनाने वाले दो बहनों के बारे में सोशल मीडिया पर देखा था लेकिन शिमला इनका स्टॉल देखने का मौका पहली बार मिला।
आखिर क्या है ‘मोमो के पापा‘
मोमो एक तिब्बती व्यंजन माना जाता है. जिसे स्टीम करके बनाया जाता है लेकिन मंडी में एक हिमाचली डिश मोमो के पापा के नाम से बिक रही है. ये डिश है हिमाचल का पारंपरिक व्यंजन सिड्डू, जिसका स्वाद यहां आने वाले लोगों को भी खूब भा रहा है. पहले सिड्डू सिर्फ घरों में ही खास मौकें पर बनाया जाता था, लेकिन बदलते दौर के साथ सिड्डू भी अब घरों से निकलकर रेस्टोरेंट, होटल और रोड कॉनर्स के फूड स्टॉल्स तक जा पहुंचा है. हिमाचली हो या नॉन हिमाचली ये सबकी पसंद बनता जा रहा है. इसको देखकर ही मुंह में पानी आ जाता है.
देखने में मोमोज और सिड्डू जुड़वा भाई की तरह लगते हैं. दोनों को बनाने का तरीका भी अलग है. लेकिन सिड्डू आकार में मोमो से काफी बड़ा होता है. तभी मंडी के सेरी मंच पर एक छोटा सा स्टॉल लगाने वाली दो महिलाओं ने इसे मोमो के पापा का नाम दिया है. मोमोज और सिड्डू के अंदर होने वाली स्टफिंग में भी अंतर होता है.
कुल्लू की रहने वाली दो बहनों अंजू और अंजना ने सिड्डू को नई पहचान दिलाई है. दोनों बहनों ने मंडी के सेरी मंच पर राष्ट्रीय शहरी अजिविका मिशन के तहत देसी हाट में अपना स्टॉल लगाती हैं. ‘मोमो के पापा सिड्डू’ नाम से उनका स्टॉल है जिसपर स्वाद के चाहने वालों की भीड़ रहती है.
कैसे मिला ‘सिड्डू को पापा’ का नाम ?
अंजना शर्मा के मुताबिक एक बार स्ट्रीट वेंडर फेस्टिवल के लिए दिल्ली गईं थी जहां उन्होंने लोगों को हिमाचल के पारंपरिक फूड सिड्डू के बारे में रूबरू करवाया था. लेकिन हिमाचल से बाहर लोग इसे नहीं जानते थे. इसलिये उन्हें सिड्डू को मोमो के पापा कह दिया और उसके बाद से यही जैसे उनका ब्रांड बन गया.
आप सांझा उत्सव में अगर जा रहे है तो मोमो के पापा का स्वाद जरूर चखे।