सुभाष चंदेल, बिलासपुर
भाखड़ा विस्थापितों के जिला बिलासपुर के लोंगो को बारंबार विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है, पहले भाखड़ा बांध, फिर एसीसी सीमेंट फैक्टरी, फिर कोल बांध परियोजना फिर फोरलेन और अब रेलवे। इन सभी बड़ी परियोजनाओं से देश और प्रदेश की तररकी में कड़ियाँ तो जुड़ रही हैं लेकिन बिलासपुर वासियों की आर्थिकी और विकास पर सरकारों का ध्यान ज्यादातर नदारद ही रहा। अब यदि रेलवे की बात करें तो सामरिक दृष्टि से अहम बिलासपुर-लेह रेललाइन की अनुमानित लागत 83,360 करोड़ रुपये आंकी गई है। 458 किलोमीटर लंबी इस रेललाइन के निर्माण के लिए हलचल भी तेज हो गई है लेकिन जो लोग रेलवे से विस्थापित हो रहे हैं उनके प्रति सरकार कर रवैया नकारात्मक ही है हालांकि यह रेललाइन भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी से आगे मंडी-मनाली होते हुए लेह तक पहुंचेगी।
इस रेललाइन के बनने से चीन सीमा तक सेना की पहुंच आसान हो जाएगी। इस रेलवे लाइन का सर्वे भी पूरा हो चुका है और बिलासपुर में काफी जगहों पर भूमि अधिग्रहण का कार्य भी चल रहा है। लेकिन जिन जगहों पर भूमि अधिग्रहण हेतू सहमति बन चुकी है उनको दिसम्बर 2020 तक जमीन की कीमतों का भुगतान हो जाना था लेकिन वह हो नहीं पाया है इससे जिन लोंगो की जमीनें अधिग्रहण की जानी है उनके मन मे डर और शंका का वातावरण बन रहा है ऐसे ही कुछ मामले लखनपुर, ब्लोह, रघुनाथपुरा, खनसर रामपुर, तुन्नु, पट्टा, ढलियार जैसे क्षेत्रों में उभर कर आये हैं। यहां के बाशिंदों का कहना है कि यदि सरकार रेलवे लाइन हेतू अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के पैसों का भुगतान समय पर नहीं कर पा रही है तो दिन प्रतिदिन जमीनों की कीमतें बढ़ रही है उन्ही बढ़ी हुई कीमतों की दर से उन्हें पैसा दिया जाना चाहिए अन्यथा वह लोग या तो आंदोलन का रुख करेंगे या फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को मजबूर होंगे। राम लाल ठाकुर ने कहा कि रेलवे लाइन से विस्थापित और प्रभावित होने वाले लोंगो से जब उन्होंने बात की तो पता चला कि लोंगो के मन भूमि अधिग्रहण से मिलने वाले पैसे को लेकर बहुत संशय बना हुआ है और कोई भी आधिकारिक तौर पर इन लोंगो से सही से बात नहीं हो पाई है।
उन्होंने मांग की है कि जब नए भू अधिग्रहण कानून के अनुसार यहां की जमीनों की कीमत बाजारी कीमत का चार गुना होनी चाहिए और यदि इन अधिग्रहित की गई जमीनों का भुगतान तय समय से देरी पर हो तो उस पर फिक्स डिपॉजिट पर दिए जाने वाली ब्याज की दरों के तहत भुगतान किया जाना चाहिए। रेलवे ने भानुपल्ली से बरमाणा तक का सर्वे पूरा कर लिया है। रेलवे लाइन के प्रस्तावित रूट पर रेलवे ने बुर्जियां लगा दी हैं। राजस्व विभाग की ओर से भी, तुन्नु, ढलियार,पट्टा रघुनाथपुरा, खनसरा, कोहलवीं और लखनपुर, ख़ैरियाँ गांव का सर्वे का कार्य पूरा कर लिया गया है और भू अधिग्रहण अधिकारी ने बैठकें भी कर ली है लेकिन लोंगो के उजड़ने का डर उनके मन पर बैठ गया गया और समाधान कोई निकल कर सामने नहीं आ पाया है।
अगर हम बिलासपुर की ही बात करे तो इसमें करीब 64 किमी लंबे इस रेलवे ट्रैक में भानुपल्ली से बरमाणा तक 20 सुरंगें बनाई बनेगी और जबकि छोटे-बड़े मिलाकर करीब 18 पुल बनेंगे। जैसे जैसे भानुपल्ली से बरमाणा तक की रेलवे लाइन बनेगी तो इसमें पर्यटन की भी अपार संभावनाएं रहेगी तो इन संभावनाओं को देखते हुए यहां की विस्थापितों को पर्यटन की दृष्टि से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि यह रेलवे ट्रैक आधे से ज्यादा गोविंद सागर झील की ऊपर होगा या फिर उसके नज़दीक होगा। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसमें पर्यावरण मंत्रालय और बीबीएमबी से एनओसी लेनी भी जरूरी होगी। इस रेलवे ट्रैक के बारे में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री भी कह चुके है कि इसके लिए पहली किश्त 405 करोड़ रुपये की जारी कर दी गई है यदि ऐसा है तो लोंगो को उनकी जमीनों का वाज़िब दान अभी तक क्यों नही दिया गया है, यह भी एक बड़ा सवाल है, इसके बारे में बिलासपुर के जिला प्रशासन और भूमि अधिग्रहण अधिकारी को सोचना चाहिए। जारीकर्ता संदीप सांख्यान महासचिव, जिला कांग्रेस बिलासपुर (हि.प्र)