हमीरपुर, 19 अप्रैल:
हिमाचल प्रदेश में बहुचर्चित इंजीनियर विमल नेगी आत्महत्या प्रकरण एक बार फिर सियासी गरमाहट में है। पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने इस संवेदनशील मामले को लेकर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली और मंशा पर गहरे सवाल खड़े किए हैं।
आज यहां जारी एक बयान में राजेंद्र राणा ने कहा कि यह बेहद चौंकाने वाला है कि विमल नेगी की डेड बॉडी बिलासपुर जिले में मिली, लेकिन वहीं एक महत्वपूर्ण पेन ड्राइव भी बरामद हुई जिसे शिमला से आए एक एएसआई ने कथित रूप से तीन हफ्ते तक अपने पास रखा। यह एएसआई तीन हफ्ते तक पुलिस के किस आलाधिकारी या राजनेता के संपर्क में रहा और उनके बीच क्या बातचीत होती रही।
राणा ने तंज कसते हुए पूछा, “बिलासपुर जिले की जूरिडिक्शन में शिमला का एएसआई क्या कर रहा था? उसे वहां किसने भेजा और उसने तीन हफ्ते तक वह पेन ड्राइव क्यों अपने पास रखी?” उन्होंने आशंका जताई कि पेन ड्राइव से छेड़छाड़ की गई हो सकती है, और यह जांच के साथ खुला खिलवाड़ है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब एसआईटी ने पेन ड्राइव मांगी, तो क्या वही मूल ड्राइव उन्हें सौंपी गई या उसमें कुछ बदला गया? राणा ने आरोप लगाया कि इस मामले में एसआईटी पर भी गहरा दबाव है, तभी तो गठित टीम के अधिकांश सदस्य या तो खुद हट गए या उन्हें हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि जो एकमात्र अधिकारी एसआईटी में बचा है, वह भी इससे पीछा छुड़ाने की कोशिश में है।
राजेंद्र राणा ने कहा कि सरकार द्वारा गठित की गई एसआईटी में शामिल अधिकारी व कर्मचारी यह समझ चुके हैं कि जिस तरह शिमला के गुड़िया कांड में सबूत मिटाने वालों को जेल की हवा खानी पड़ी, वैसे ही विमल नेगी मामले में भी सच छिपाने की कोशिश करने वालों को अंजाम भुगतना होगा। इसलिए जाकर लोग एसआईटी छोड़ कर चले गए हैं या उन्हें चेंज कर दिया गया है।
राजेंद्र राणा ने तीखा सवाल उठाया कि आखिर सरकार दोषियों को बचाने में क्यों जुटी है? उन्होंने कहा कि ऐसा क्या राज़ है, जिसके उजागर होते ही सरकार में बैठे बड़े नेताओं के होश उड़ सकते हैं।
राजेंद्र राणा ने कहा कि यदि सरकार के पास छिपाने को कुछ नहीं है तो वह इस मामले की जांच तुरंत सीबीआई को सौंपे। वरना यह जनता के साथ विश्वासघात और न्याय व्यवस्था के साथ खिलवाड़ होगा।
उन्होंने कहा कि यह प्रकरण अब सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि सियासी और प्रशासनिक सच्चाई की परीक्षा बन चुका है।