हिमाचल प्रदेश में सामाजिक कलंक से बचने के लिए लड़कियां नशे के रोग का उपचार नहीं करवा रही हैं। जो इलाज करवाने पहुंच रही हैं, वे भी बीच में ही उपचार छोड़ रही हैं। वर्ष 2022 के आंकड़ों पर गौर करें तो ओपीडी में इलाज के लिए ड्रग्स से पीड़ित 1000 पुरुष मरीजों पर 10 महिलाएं ओपीडी में इलाज के लिए पंजीकृत हुईं। जहां तक इलाज के फालोअप की बात है तो इनमें 600 पुरुषों और 2 महिलाओं का ही फालोअप इलाज हुआ।
यानी, जहां 400 पुरुषों ने अपना पूरा उपचार नहीं करवाया, वहीं 8 महिलाओं ने भी नहीं करवाया। यह खुलासा आईजीएमसी शिमला के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. दिनेश दत्त शर्मा और सहायक प्रोफेसर डॉ. निधि शर्मा ने किया। इन विशेषज्ञों ने बताया कि आईजीएमसी शिमला के मनोचिकित्सा विभाग में नशे से रोगी बने कुल 261 पुरुष मरीज और पांच महिलाएं दाखिल हुईं।पांचों महिलाएं चिट्टा की समस्या के चलते दाखिल हुईं। हिमाचल प्रदेश में चिट्टा और अन्य नशा न केवल किशोरों और युवकों को अपने शिकंजे में लिए हुए है, बल्कि किशोरियां, युवतियां और महिलाएं भी इसकी चपेट में हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से बहुत सी महिलाएं तो अस्पताल में इसलिए नहीं लाई जाती हैं कि इससे सामाजिक कलंक माना जाता है।
जब मामले बहुत ज्यादा बिगड़ जाए, वही यहां पहुंच रहे हैं। जो उपचार के लिए मामले आ भी रहे हैं, वे भी थोडे़ से इलाज के बाद अपना आगामी फालोअप पूरा नहीं कर रहे हैं। इलाज को बीच में छोड़ रहे हैं। इससे नशे की समस्या फिर से हो रही है। आनुवांशिक कारणों से भी लड़कों और लड़कियों में नशे की लत पड़ रही है। मां-बाप नशा करते हैं तो उनके लड़के और लड़कियों में नशे से जुडे़ रोग हो रहे हैं।