स्थाई ठिकाना नहीं फिर भी कोई मलाल नहीं घुमंतु गंुज्जरों को
शिमला 8 जून । मैदानी इलाकों में पारा बढ़ने के साथ ही घुमन्तुं गुज्जरों ने पहाड़ी क्षेत्रों का रूख कर दिया है । कुछ गंुज्जरों ने गर्मियों से राहत पाने के लिए गिरि नदी के किनारे ढेरे लगाए हैं । इस समुदाय का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है फिर भी यह समुदाय अपने व्यवसाय से प्रसन्न है । सबसे अहम बात यह है कि इस समुदाय के लोगों को बेघर होने का कोई खास मलाल नहीं है । बता दें कि गर्मियों के दिनों घुमंतु गुज्जर समुदाय के लोग नारकंडा, चांशल और चूड़धार के जंगलों में रहते हैं । जबकि सर्दियों के दौरान नालागढ़, बददी, पांवटा, दून और सिरमौर जिला के धारटीधार क्षेत्र में चले जाते हैं ।
सूचना प्रौद्योेगिकी की क्रांति में इस समुदाय का कोई सारोकार नहीं है । सोशल मिडिया, फेसबुक, इंटरनेट , सियासत इत्यादि से इस समुदाय का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है । यह लोग अपने सभी रीति रिवाजों व विवाह इत्यादि समाजिक बंधनों को जंगलों में मनाते हैं । बीमार होने पर वह अपने पारंपरिक दवाओं अर्थात जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करते हैं ।
मवेशियों को लेकर नारकंडा जा रहे शेखदीन व कमलदीन गुज्जर ने बताया कि आजादी के 75 वर्ष बीत जाने पर भी किसी भी सरकार ने उनके संघर्षमय जीवन बारे विचार नहीं किया और भविष्य में उमीद भी नहीं है। दूध, खोया, पनीर इत्यादि बेचकर यह समुदाय रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करता है । सरकार ने घुमंतु गुज्जरों के लिए मोबाइल स्कूल अवश्य खोले हैं परंतु स्थाई ठिकाना न होने पर इसका ज्यादा लाभ नहीं मिल पा रहा है अधिकांश बच्चे अनपड रह जाते हैं । घुमंतु गुज्जर अपने आपको मुस्लिम समुदाय का मानते हैं परंतु इनके द्वारा कभी न ही रोजे रखे गए हैं और न ही कभी नमाज पढ़ी जाती है । कमलदीन का कहना है कि अनेकों बार जंगलों में न केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। बल्कि जंगली जानवरों से जान बचाना मुश्किल हो जाता है ं।
पारा चढ़ते ही घुमंतु गुज्जरों ने किया पहाड़ी क्षेत्रों का रूख

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