बुरांस के फूल पर्यटकों के लिए आकर्षक को केंद्र
शिमला 15 मार्च । जुन्गा क्षेत्र की मुडाघाट, छलंडा, कोटी और कूफरी घाटी इन दिनों बुरांस के फूलों से सराबोर है। जिसका इस क्षेत्र में आए पर्यटकों द्वारा भरपूर लुत्फ उठाया जा रहा है । पर्यटक सड़क के किनारे गाड़ी को रोककर बुरांस के फूलों को निहार कर फोटो खीच रहे हैं ।
बता दें इसका वैज्ञानिक नाम रहोडोडेंड्रन है। इसके पेड़ों पर मार्च-अप्रैल के महीने में लाल व गुलाबी रंग के फूल खिलते हैं। यह पौधा अधिकांश ठंडे जहां तापमान 120 डिग्री सेल्सियस रहता है और ढलान वाली जगहों में उगता है। इसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। बुरांस समुद्र तल से 1500 से 3600 मीटर की मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला वृक्ष है। इस वृक्ष की पत्तियां देखने में मोटी और फूल घंटी की तरह होते हैं। यह वृक्ष स्वतः ही जंगलों में उगता है। गौर रहे कि हिमाचल में यह फूल भरपूर मात्रा में पाया जाता है। कंुछ जिलों में इस फूल का प्रयोग अचार, मुरब्बा और जूस के रूप में किया जाता है। ग्रामीण परिवेश के लोग बुरांस के फूलों को बाजार में बेचने को भी लाते है जोकि लोगोें की आय का साधन भी बन गए है।
क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक प्रीतम ठाकुर ने बताया कि वैशाख की सक्रंाति को बुरांस के फूलों की माला बनाकर सबसे पहले अपने कुल देवता के मंदिर तदोपंरात अपने घरों में लगाना शुभ मानते हैं । बुरांस के फूलों की चटनी बहुत ही स्वादिष्ट होती है जो कि लू और नकसीर से बचने का अचूक नुस्खा है। कुछ लोग बुरांस पंखुड़ियों को सुखाकर रख लेते हैं जिसे वर्ष चटनी व अन्य खाद्य वस्तुओं में इस्तेमाल करते हैं ।
कोटी के आयुर्वेद चिकित्सक डॉ0 विश्वबंधु जोशी का कहना है बुरांस के फूल औषधीय गुणों से भरपूर है जिसका विभिन्न दवाओं में उपयोग किया जाता है । बुरांस में विटामिन ए, बी-1, बी-2, सी, ई और के प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं जो की वजन बढने नहीं देते और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल रखता है। बताया कि बुरांस के फूलों का शर्बत दिमाग को ठंडक देता है और एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण त्वचा रोगों से बचाता है।
शिमला 15 मार्च । जुन्गा क्षेत्र की मुडाघाट, छलंडा, कोटी और कूफरी घाटी इन दिनों बुरांस के फूलों से सराबोर है। जिसका इस क्षेत्र में आए पर्यटकों द्वारा भरपूर लुत्फ उठाया जा रहा है । पर्यटक सड़क के किनारे गाड़ी को रोककर बुरांस के फूलों को निहार कर फोटो खीच रहे हैं ।
बता दें इसका वैज्ञानिक नाम रहोडोडेंड्रन है। इसके पेड़ों पर मार्च-अप्रैल के महीने में लाल व गुलाबी रंग के फूल खिलते हैं। यह पौधा अधिकांश ठंडे जहां तापमान 120 डिग्री सेल्सियस रहता है और ढलान वाली जगहों में उगता है। इसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। बुरांस समुद्र तल से 1500 से 3600 मीटर की मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला वृक्ष है। इस वृक्ष की पत्तियां देखने में मोटी और फूल घंटी की तरह होते हैं। यह वृक्ष स्वतः ही जंगलों में उगता है। गौर रहे कि हिमाचल में यह फूल भरपूर मात्रा में पाया जाता है। कंुछ जिलों में इस फूल का प्रयोग अचार, मुरब्बा और जूस के रूप में किया जाता है। ग्रामीण परिवेश के लोग बुरांस के फूलों को बाजार में बेचने को भी लाते है जोकि लोगोें की आय का साधन भी बन गए है।
क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक प्रीतम ठाकुर ने बताया कि वैशाख की सक्रंाति को बुरांस के फूलों की माला बनाकर सबसे पहले अपने कुल देवता के मंदिर तदोपंरात अपने घरों में लगाना शुभ मानते हैं । बुरांस के फूलों की चटनी बहुत ही स्वादिष्ट होती है जो कि लू और नकसीर से बचने का अचूक नुस्खा है। कुछ लोग बुरांस पंखुड़ियों को सुखाकर रख लेते हैं जिसे वर्ष चटनी व अन्य खाद्य वस्तुओं में इस्तेमाल करते हैं ।
कोटी के आयुर्वेद चिकित्सक डॉ0 विश्वबंधु जोशी का कहना है बुरांस के फूल औषधीय गुणों से भरपूर है जिसका विभिन्न दवाओं में उपयोग किया जाता है । बुरांस में विटामिन ए, बी-1, बी-2, सी, ई और के प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं जो की वजन बढने नहीं देते और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल रखता है। बताया कि बुरांस के फूलों का शर्बत दिमाग को ठंडक देता है और एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण त्वचा रोगों से बचाता है।