एस आर हरनोट, शिमला
हिमाचल प्रदेश के मंडी से सांसद बनी प्रख्यात अभिनेत्री कंगना रनौत को चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर तैनात CISF की महिला सिपाही ने जिस तरह थप्पड़ मारा उसे किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता है। और यह और भी गलत है कि थप्पड़ मारने वाली सिपाही कुलविंदर कौर है जिसके जिम्मे लोगों की सुरक्षा है। वो कंगना के किसान आंदोलन पर दिए गए बयान से आहत थी। हमारे साथ आए दिनों बहुत सी आहत कर देने वाली घटनाएं होती रहती है परंतु इसका यह कतई मतलब नहीं कि हमें इस तरह गैर कानूनी तरीके से बदला लेना चाहिए……?
परंतु इसे आज के अभद्र, बिगड़ते, झूठे और भ्रष्ट राजनीतिक माहौल की दृष्टि से देखें या सोचे तो किसी भी उन राजनीतिज्ञों के लिए आने वाला समय बिलकुल अच्छा नहीं है जिन्होंने अपने को जनता से ऊपर समझ लिया है। यहां दर्द मां को दिए कंगना के गलत बयान का था लेकिन देश में जिस तरह से हमारे राजनेताओं ने भाषा की शालीनता को खत्म कर दिया है वह घोर निंदनीय तो है लेकिन जो लोग उससे आहत हो रहे हैं उनके मन भयंकर आक्रोश से कुलविंदर कौर के मन जैसे है। इन चुनाव में तो राजनेताओं ने अभद्रता की भी सीमाएं नहीं रहने दी है।
सोचिए उन युवाओं का जो डिग्रियां लेकर सड़कों पर हैं, मजदूरों के हाथों में काम नहीं है, किसानों के पास गले में रस्सियां डालने के सिवा शेष क्या बचा है और लोग मंहगाई से कितने परेशान हैं। छोटे दुकानदार जी एस टी के चक्करों में उलझे हैं, सच बोलने वालों की मंजिलें जेलें तय कर दी गई हैं, दलित और वंचित जगह जगह अपमानित हो रहे हैं। न्याय के साथ साथ अफसरों और राजनेताओं की संवेदनाएं तकरीबन समाप्ति पर है। वोट के लिए जो आपके दर पर नाक रगड़ते आते हैं, आमजन का मिलना उनसे सत्तासीन होने के बावजूद दुर्लभ है। और जिस तरह हमारे राजनेता ईश्वर के अवतार होने लगे हैं, पार्टी या जनता से ऊपर होने लगे हैं, संविधान से ऊपर होने लगे हैं, सम्मान और स्नेह की जगह नफरतें फैलाने में सारे रिकॉर्ड दरकिनार हो गए हैं…..इससे आमजन अब परेशान ही नहीं है उन सभी के भीतर एक कुलविंदर कौर देखी और महसूस की जा सकती है जो आने वाले समय के लिए तमाम राजनेताओं को खतरे की घंटी है।
आज 1950 में लिखी रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्तियां अनायास ही याद आ रही है…..
सिहासन खाली करो कि जनता आती है…..
और आप इस पूरी कविता को यहां पढ़ सकते हैं…….झूठ, अन्याय, धोखेबाजी, भ्रष्टाचार, दबंगता, चालाकियां ज्यादा दिन नहीं चलती…..हमारे नेता और ब्यूरोक्रेट्स भूल रहे हैं कि किसी भी देश को वहां की जनता ही चलाती है….सत्ता तो रंगमंच है। इसलिए अभी भी समय है, भाषण दीजिए लेकिन भाषा की शालीनता रखिए और आमजन की मुश्किलों को समझिए जिसके लिए आप सरकारों में आते हैं, सिहासनों पर विराजमान होते हैं।
कंगना हिमाचल की बेटी है। प्रख्यात अभिनेत्री है और अब सांसद भी। भले ही कुलविंदर कौर को कुछ भी सजा मिले, वह मिलेगी भी, क्योंकि उनके विरोध का तरीका गलत था, परंतु यह थप्पड़ अब तमाम उन राजनेताओं को याद रख लेना चाहिए जो अपने को ईश्वर समझने लगे हैं। जानता से ऊपर।
कविता…जो की #रणधारी सिंह दिनकर
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता? हां,लंबी – बडी जीभ की वही कसम,
“जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।”
“सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?”
‘है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?”
मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।