शिमला 23 फरवरी । अकाल जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए जैईश्वरी माता धरेच के मंदिर में करीब 70 क्ंिवटल रामदाना अथवा बाथू अनाज आज भी भंडारण में सुरक्षित रखा गया है । बीते दिनों रिहाड़ गांव के कारदारों ने इस रामदाना को मंदिर के भंडारण से निकालकर इसे सूखाकर पुनः 130 कटटा वापिस मंदिर में रखा गया है ताकि अकाल जैसी आपातकालीन स्थिति में लोगों के काम आ सके । बता दें कि रामदाना एक ऐसा अनाज है जिसमें न ही कीड़े लगते हैं और न ही जानवर इसे नुकसान पहूंचाते हैं । सदियों तक यह अनाज खराब नहीं होता है।
जैईश्वरी माता के बजीर परिवार के सदस्य हरिचंद शर्मा ने रामदाना अथवा बाथू के इतिहास के बारे में बताया कि तत्कालीन क्योंथल रियासत के गांव चिखर गांव में मंडी सराज क्षेत्र का एक समृद्ध परिवार यहां आकर बसने लगा । इस परिवार ने इस क्षेत्र के आराध्य देव जुन्गा को अपने घर आमंत्रित किया । काफी इंतजार करने के उपरांत जब देवता को कारदार उनके घर नहीं लाए तो इन्होने अपना देवता का मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया गया । जिसके लिए मूर्ति भी निर्मित की गई परंतु यह परिवार इसकी पूजा करने के विधि नहीं जानते थे । इन्होने माता के धरेच मंदिर जाकर पुजारी की मांग की गई । जिस पर कारदारों ने एक बालक को पुजारी बनाकर चिखर भेजा गया । कुछ वर्षों उपरांत करोली जंगल में भयंकर आग लग गई और सारा जंगल राख हो गया । पुजारी और इस परिवार ने इस समूचे जंगल में रामदाना का बीज डाल दिया । रामदाना की बंपर फसल हुई जिसे साफ करके करके रख दिया । तत्पश्चात स्थानीय के लोगों ने सराजी परिवार के मुखिया जैवी से क्षमा याचना की और इस देवता का नाम भी जैवी रखा गया । इस गांव के सभी लोगों ने पुजारी को सम्मानपूर्वक रामदाना का एक-एक कटटा देकर वापिस धरेच भेज दिया गया । बताते है कालांतर से यह बाथू इस मंदिर में मौजूद है । जिसका अनेकों बार अकाल पड़ने पर बांटा गया ।
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ0 विश्वबंधु जोशी ने बताया कि रामदाना में फाईबर, आयरन और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जोकि मनुष्य के लिए बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है ।